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________________ चरित्र-योजना वह सफल सेनानायक है । युद्ध क्षेत्र में वह अपनी सेना को सुव्यवस्थित ढंग से खड़ा करता है ।' चेतन से किये गये युद्ध से विदित होता है कि वह रणनीति में कितना कुशल है और युद्ध में कितने दाव पेचों से काम लेता है : दुइ धार ॥ अरि भूप ॥ मोह सराग भाव के बान । मारहि खंच जीव को तान ॥ जीव वीतराग निज ध्याय । मारहिं धनुष बाण इहि न्याय ॥ तह मोहनृप खड्ग प्रहार । मारे पाप पुण्य हंस शुद्ध वेदे निज रूप । यही खरग मारें मोह चक्र ले आरत ध्यान । मारहि चेतन को पहिचान || जीव सुध्यान धर्म की ओट | आप बचाय करें परचोट || मोह रुद्र बरछी गहि लेय । चेतन सन्मुख घाव जु देय || हंस दयालु भाव की ढाल । निजहि बचाय करहि परकाल || मोह अविवेक है जम दाढ़ि । घाव करें चेतन पर काढ़ि || मोह वीरतापूर्वक लड़ता हुआ अन्त में पराजित होता है और चेतन विजयी | चरित्र के लक्ष्य की दृष्टि से मोह की पराजय सत् के सम्मुख असत् की पराजय है । आगे सुबुद्धि एवं कुबुद्धि का चरित्र द्रष्टव्य है । बुद्ध बुद्धि सुबुद्धि और कुबुद्धि चेतन की दोनों रानियों में पारस्परिक स्पर्धा का प्रबल भाव है । उनके चरित्र में नारी हृदय के मनोभावों की अच्छी झलक १. फौजें कीन्हीं चार बड़े विसतारसों । निज सेवक सरदार, किये भुजभारसों ॥ पहिली फौजें सात, सुभट आगे चले । दूजी फौजें चार, चारतें सब भले | २. वही, पद्य १२६ से ३. वही, पद्य १६६ से २११ — चेतन कर्म चरित्र, पद्य ४२, पृष्ठ ५६ १३७, पृष्ठ ६८-६९ / १७०, पृष्ठ ७२ ।
SR No.010270
Book TitleJain Kaviyo ke Brajbhasha Prabandh Kavyo ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalchand Jain
PublisherBharti Pustak Mandir
Publication Year1976
Total Pages390
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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