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________________ चरित्र-योजना २०१ है और पापकर्म तथा लोक-निंदा से नहीं डरता ।' उस पर उसके मित्र के धर्मोपदेश का कोई प्रभाव नहीं होता और छल-बल के शील भंग का अपराध सिर पर लेता है । अपने भाई की पत्नी ढोंग रचने में वह पटु है । वह मिथ्या वैराग्य धारण कर मिथ्या तपस्या में रत रहता है । वह क्रूर, क्रोधी और अत्याचारी है | क्षमा-याचना कर चरण स्पर्श करने वाले अपने भाई की वह निर्ममता से हत्या कर देता है ।" वह वैर और प्रतिशोध की भावना का कभी परित्याग नहीं करता । अनेक जन्मों तक उसके दुष्ट स्वभाव में कोई अन्तर नहीं आता । वह सदैव इसी अवसर की ताक में रहता है कि भयानक आकृति धारण कर अपने भाई पर दुर्भेद्य उपसर्ग किये जायें, उसे नाना कष्ट दिये जायें । " कमठ के चरित्र से यह ध्वनित है कि कमठ जैसे पुरुष संसार में जन्म इसलिए लेते हैं कि वे पाप और अधर्म को पुण्य और धर्म समझते हुए अशुभ १. पार्श्वपुराण, पद्य ६८, पृष्ठ १० । २. छलबल कर भीतर लई, वनिता गई अजान । राग अन्ध भाखे विविध, दुराचार की खान ॥ गजमाती कमठ कलंकी । अघ सौं मनसा नहि संकी । भावज वन करनी रंजो । निज सील तरोवर भंजो ॥ - वही, पद्य ८३-८४, पृष्ठ ११ । ३. वही, पद्य १०१, पृ० १३ । ४. वही, पद्य १०६ से ११६, पृष्ठ १४ । अधिक न थांम्यो जाय । राते लोयन प्रजुली काय ॥ आरंभ्यो उपसर्ग महान | कायर देखि भजें भयमान || ओर | गरज गरज बरख घन घोर ॥ धार । वक्र बीज झलकै भयकार | अधकार छायौ चहुँ झरे नीर मुसलोपम X X X मुंडमाल गल धरिहिं, लाल लोयननि डरहिं जन । मुख फुलिंग फुंकरहिं, करहिं निर्दय धुनि हन हन ॥ ५. - वही, पद्य १८ से २० तथा २२, पृ० १२३ ।
SR No.010270
Book TitleJain Kaviyo ke Brajbhasha Prabandh Kavyo ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalchand Jain
PublisherBharti Pustak Mandir
Publication Year1976
Total Pages390
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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