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________________ चरित्र-योजना १८७ के हर्ष की सीमा नहीं है। उनका रूप-शृंगार अनुपम है और उनकी क्रीड़ाएँ मोहक हैं। वे वीर, साहसी और संघर्षप्रिय हैं। बाधाओं एवं परिस्थितियों से संघर्ष करने में उन्हें आनन्द आता है। कालीदह में पहुँचकर वे नागिन से कहते हैं कि तुम नाग को अभी जगा दो अन्यथा मैं तुम्हारे प्राण लेता हूँ। नागिन उन्हें समझाती है कि मेरा कंत तुम्हें एक ही कवल में डस लेगा, तू मेरी सीख मान ले। कृष्ण के न मानने पर वह साक्षात् काल को जगा देती है। वह विष की ज्वाला उगलता हुआ कृष्ण की ओर दौड़ता है। कृष्ण बड़ी युक्ति से उसकी पूछ को फटकार कर पराजित कर देते हैं, विजय के उपहारस्वरूप कृष्ण को नागिन द्वारा कमल का पुष्प मिलता है। वे अपनी मुट्ठी के प्रहार से कंस के हाथी के दाँतों को उखाड़ लेते हैं। वे एक क्षण में कंस को यमराज के पास पहुँचा देते हैं। कौरव-पाण्डवयुद्ध में उनका सोत्साह और युद्ध कौशल वरेण्य है । यशोधर 'यशोधर चरित' में राजा यशोधर का चरित्र क्रोध पर क्षमा, राग नेमीश्वर रास, पद्य ११५, पृष्ठ ८ । बंसी बजावे प्रेम सों, मुकुट विराज अधिक अनूप तौ। इहि विधि बाल क्रीड़ा कर, गोप्या में करि नानारूप तौ ॥रासभणों। कानां कुडल जगमग, तन सोहै पीतांबर चीर तौ ॥ मुकुट विराजे अति भली, बंसी बजावै स्याम सरीस तो ॥रासभणों०।। -वही, पद्य १४८-१४६, पृष्ठ १० । ३. वही, पद्य १२८ से १३३, पृष्ठ है । ४. वही, पद्य १६८, पृष्ठ ११ । ५. वही, पद्य १६६, पृष्ठ ११ । ६. केसो देषि विचारियो, वज्रवाण छोड्यो तिहि वारतौ। परवत छेद्या आवता, चूर्ण किया सब सेना मार तौ॥ -नेमीश्वर रास, पद्य, ८८६, पृष्ठ ५२ ।
SR No.010270
Book TitleJain Kaviyo ke Brajbhasha Prabandh Kavyo ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalchand Jain
PublisherBharti Pustak Mandir
Publication Year1976
Total Pages390
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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