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________________ १८२ जैन कवियों के ब्रजभाषा-प्रबन्धकाव्यों का अध्ययन राम आलोच्य काव्यों में कवि रामचन्द्र 'बालक' कृत 'सीता चरित' में ही राम के चरित्र की झांकी मिलती है । उनका सम्पूर्ण जीवन साधना के लिए समर्पित है। उनका साधना-क्षेत्र विराट् है । वे सत्वगुणी और कोमल प्रकृति वाले हैं। परिस्थितियाँ उन्हें अनवरत संघर्ष के लिए प्रेरित करती हैं और सामाजिकों की सहानुभूति एवं संवेदना का पात्र बनाती हैं। उनके हृदय की उदारता और विशालता, उनकी तेजस्विता और कर्मवीरता तथा उनकी कतिपय मानवोचित दुर्बलताएँ उनके चरित्र को उदात्त बनाती हैं । वे रूप तेज में असाधारण तथा अनेक गुणों के भण्डार हैं। उनका हृदय अत्यन्त पवित्र है। वे विनम्र, आज्ञाकारी, कर्तव्यपरायण और त्यागी हैं। भरत को राज्य देते समय न उन्हें विलम्ब होता है, न दुःख । वे भरत से भी पिता की आज्ञा पालन करने के लिए आग्रह करते हैं । उनकी दृष्टि में पिता की आज्ञा के अनुकूल आचरण करने वाला पुत्र ही विवेकशील, विनीत और धर्मवंत है।' राम अजेय सेनानी की भांति उत्साही, वीर और पराक्रमी हैं। उनका शौर्य और वीरत्व दुष्टों का दलन करने के लिए प्रयाण करते समय पिता से कहे गये वचनों में तथा धनुष यज्ञ एवं रावण से युद्ध के अवसर पर उनके द्वारा सम्पन्न कार्य-व्यापारों में झलकता है । १ सीता चरित, पद्य १५३, पृष्ठ ११ । २. वही, पद्य ४४०, पृष्ठ २७ । ३. वही, पद्य ४१७, पृष्ठ २६ । राम कहे भैया भरत, तात वचन परवान । सौ सुधी सौ विनीत नर, धरमी परम सुजान ॥ -वही, पद्य ४१८, पृष्ठ २६ । ५. वही, पद्य १६६-१६७, पृष्ठ १२ । ६. वही, पद्य २८१ से २८६, पृष्ठ १६ । ७. वही, पद्य १६०८ से १६१०, पृष्ठ १०८ ।
SR No.010270
Book TitleJain Kaviyo ke Brajbhasha Prabandh Kavyo ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalchand Jain
PublisherBharti Pustak Mandir
Publication Year1976
Total Pages390
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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