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________________ चरित्र-योजना १७१ आलोच्य प्रबन्धों में देव पात्रों को रूपायित करने के प्रमुखतः चार कारण दिखायी देते हैं : (१) प्रमुख पात्रों के यश-तेज आदि के विस्तार के लिए। (२) उनकी आकस्मिक संकट में सहायता करने के लिए। (३) कथानक में चमत्कारपूर्ण, आश्चर्यजनक और अतिप्राकृत तत्त्वों के सम्मिश्रण के लिए। (४) परम्परा-पालन के लिए । देव चरित्रों में प्रमुखतः इन्द्र-इन्द्राणी, विद्याधर-विद्याधरी आदि के शीलाचार का ही निरूपण हुआ है। 'नेमीश्वर रास', 'पार्श्वपुराण', 'नेमिचन्द्रिका', नेमिनाथ मंगल' प्रभति प्रबन्धकाव्यों में इन्द्र (विशेषतः सौधर्म नाम के इन्द्र) का चरित्र-चित्रण उपलब्ध होता है। इन्द्र स्वर्ग के देवताओं पर शासन करते हैं और सभा में स्थित सिंहासन पर बैठकर उन्हें धर्मोपदेश देते हैं।' वे स्वच्छन्द बिहार करते हैं। ताण्डव नृत्य के अवसर पर उनकी गति तथा उनके कार्यों में विद्युत जैसी चपलता लक्षित होती है । उस समय उनमें अद्भुत रस साकार हो उठता है। वे कंठ-कटि-हस्त-चरण को अनेक प्रकार से घुमाव देते हैं, क्षण-क्षण में नाना रूप धारण कर लेते हैं, क्षणभर में वे आकाश में संचार करते हैं, फिर क्षणभर में धरती पर आकर नृत्य में तल्लीन हो जाते हैं, फिर एक क्षण में ही चन्द्र और तारावली से स्पर्श करते हैं। ' उक्त काव्यों में इन्द्र प्रायः भक्त के रूप में चित्रित हुए हैं । तीर्थंकरों के पार्श्वपुराण, पद्य २६४, पृष्ठ ७४ । २. वही, पद्य २३०-३१, पृष्ठ ७४ । ३. वही, पद्य ११६ से १२१, पृष्ठ १०५ ।
SR No.010270
Book TitleJain Kaviyo ke Brajbhasha Prabandh Kavyo ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalchand Jain
PublisherBharti Pustak Mandir
Publication Year1976
Total Pages390
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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