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________________ चरित्र-योजना हमारे अध्ययन की सामग्री प्रत्यक्ष मनुष्य है । मनुष्य ही साहित्य का लक्ष्य है।' वही काव्य के भावाश्रित रूप का आलम्बन है। कहने की आवश्यकता नहीं कि कवि-कर्म का सम्बन्ध भावाभिव्यंजना से है, मनुष्य के स्वभाव-चित्रण से है। यह स्वभाव-चित्रण ही चरित्र-चित्रण है। चरित्र या पात्र किसी कृति के भाग्यविधाता होते हैं। उनकी प्रबन्धकाव्य में महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है । सच पूछा जाये तो प्रबन्ध की सारी घटनाएँ, सारे आदर्श और सारी कल्पनाएँ पात्रों से ही सम्बद्ध होती हैं। उनमें भावरस की प्रतिष्ठा हेतु चरित्र ही होते हैं। प्रबन्ध नाना पात्रों का रंगमंच होता है जिसमें प्रमुख स्थान नायक का होता है। उसके अतिरिक्त पात्रों में कुछ पात्र सहयोगी और कुछ प्रतिद्वन्द्वी होते हैं। प्रतिद्वन्द्वी पात्रों के नेता (प्रतिनायक) का स्थान नायक के पश्चात् दूसरा है क्योंकि वही नायक से अनवरत संघर्ष कर उसके चरित्रोत्कर्ष में सहायक होता है। प्रबन्धकाव्यों में जहाँ कहीं भी अलौकिक चमत्कारों और अतिरंजनाओं से युक्त दैवी चरित्र दृष्टिगत होते हैं, वे भी किसी-न-किसी रूप में मानव से सम्बद्ध होते हैं । मानव से असम्बद्ध देव या अवतारी चरित्र निरर्थक हैं । १. डॉ० हजारीप्रसाद द्विवेदी : अशोक के फूल, पृष्ठ १६४ । २. वही, पृष्ठ १७६ । ३. डॉ० सरनामसिंह शर्मा 'अरुण' : विमर्श और निष्कर्ष, पृष्ठ ७१ । ४. डॉ० बेचन : आधुनिक हिन्दी कथा-साहित्य और चरित्र-विकास, पृष्ठ ४६ । डॉ० श्यामनन्दन किशोर : आधुनिक हिन्दी महाकाव्यों का शिल्पविधान, पृष्ठ २०१।
SR No.010270
Book TitleJain Kaviyo ke Brajbhasha Prabandh Kavyo ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalchand Jain
PublisherBharti Pustak Mandir
Publication Year1976
Total Pages390
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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