SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 14
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( १६ ) छन्द-योजना-दोहा-चौपई, चाल, ढाल, सवैया, कवित्त, पद्धरी, पत्ता, अन्य छन्द। शैली-आलोच्य प्रबन्धकाव्य और शैलियाँ, इतिवृत्त शैली, उपदेश शैली, संवाद या प्रश्नोत्तर शैली, निषेध शैली. प्रबोधन शैली, व्यंग्य या भर्त्सना शैली, संबोधन शैली, मानवीकरण या मूर्तीकरण शैली, गीत शैली, सटेक गीत शैली, निष्कर्ष। नैतिक, धार्मिक एवं दार्शनिक परिपार्श्व ३२७-३७८ नीति, सामान्य नीति-सज्जन, दुर्जन, नारीः शीलवती. शीलविहीना, पुण्यवान्, बलवान्, क्षमाशील, अन्धा, कामी, मोह, तृष्णा, मन, शरीर, लक्ष्मी, उद्यम, भाग्य, संगति। राजनीति-राज्य, राजा, न्याय और दण्ड, शूरवीर । धर्म-श्रद्धा, अर्हन्त, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय और साधु, गुरु, सरस्वती। विश्वास-आत्म-सत्ता, पुरुषार्थ, आत्मविकास और मोक्ष, स्वर्ग-नरक, जन्म-मरण और पुनर्जन्म, स्वप्न, संसार की असारता, दुर्लभ मनुष्य-भव, कर्मफल, पुण्य-पाप, ईश्वरत्व, दान, शील, क्षमा, अहिंसा, अपरिग्रह, अनात्मभाव, ज्ञान, ध्यान, योग-तप-संयम। कर्मकाण्ड । दर्शन-जीव, अजीव, पुद्गल, धर्म-अधर्म-आकाश और काल, आस्रव, बन्ध, संवर, निर्जरा, मोक्ष, निष्कर्ष । ८. लक्ष्य-संधान ३७६-३६२ तीर्थकरों का चरितगान और उनके उदात्त चरित्र से प्रेरणा, आचार-पक्ष पर बल और नैतिक आदर्शों की प्रतिष्ठा, दार्शनिक परिपावं में शद्धात्म-तत्त्व का संदेश, गुरुभक्ति, अनूदित काव्यः धर्म-प्रचार एवं प्रसार, निष्कर्ष । उपसंहार ३६३-४०० प्रन्य-सूची ४०१-४१०
SR No.010270
Book TitleJain Kaviyo ke Brajbhasha Prabandh Kavyo ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalchand Jain
PublisherBharti Pustak Mandir
Publication Year1976
Total Pages390
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy