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________________ ११८ जैन कवियों के ब्रजभाषा-प्रबन्धकाव्यों का अध्ययन करते रहे। आगे चलकर विश्वनाथ कविराज ने महाकाव्य के जो लक्षण निर्धारित किये, उनमें हमें पूर्ववर्ती सभी आचार्यों के मतों का प्रायः समाहार उपलब्ध होता है : (१) महाकाव्य सर्गबद्ध होता है । (२) उसमें आठ से अधिक सर्ग होते हैं, जो आकार में न बहुत छोटे हों, न बहुत बड़े। (३) उसका नायक धीरोदात्त-गुण-सम्पन्न एक देवता या उच्चकुलोत्पन्न क्षत्रिय होता है । कहीं सवंश में उत्पन्न अनेक राजा भी नायक होते हैं । (४) शृंगार, वीर और शान्त रसों में से एक रस अंगी रूप में और ____ अन्य रस अंग रूप में होते हैं । (५) कथावस्तु ऐतिहासिक या लोक-प्रसिद्ध सज्जन से सम्बद्ध होती है। (६) नाटक की सर्व सन्धियों का निर्वाह होता है । (७) चतुर्वर्ग फलों में से किसी एक की सिद्धि अवश्य होती है। (८) आरम्भ नमस्कार, आशीर्वचन या वस्तु-निर्देश से होता है । (९) सज्जन-सुयश-वर्णन और दुर्जन-निन्दा होती है । (१०) प्रत्येक सर्ग में एक ही छन्द होता है । कहीं-कहीं सर्ग में अनेक छन्द भी होते हैं । सर्ग का अन्तिम छन्द भिन्न होता है। सांत __में भावी कथा का संकेत होता है । (११) सन्ध्या, सूर्य, चन्द्रमा, रजनी, प्रदोष, दिन, अन्धकार, प्रातःकाल, मध्याह्न, मृगया, पर्वत, ऋतु, वन, समुद्र, संभोग, वियोग, मुनि, स्वर्ग, नगर, यज्ञ, संग्राम, विवाह, मंत्र, पुत्र और अभ्युदय आदि का यथाअवसर सांगोपांग वर्णन होता है। १. विश्वनाथ कविराजः साहित्यदर्पण, पृष्ठ ३१५ से ३२४, षष्ठ परिच्छेद।
SR No.010270
Book TitleJain Kaviyo ke Brajbhasha Prabandh Kavyo ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalchand Jain
PublisherBharti Pustak Mandir
Publication Year1976
Total Pages390
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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