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________________ २४ प्राचीन हिन्दी जैन कवि असमय में ही अपने इस मित्र के परलोक गमन से कविवर के हृदय को बड़ा धक्का लगा जिसे वे जीवन भर नहीं भुला सके । जौनपुर का नवाव चीनी किलीचखां भी आपका सरल हृदय मित्र था । किलीचखां बड़ा बुद्धिमान, पराक्रमी और दानी था । वह वादशाह की ओर से 'चार हजारी मीर' कहलाता था । जव वह जौनपुर का नवाव वनकर आया था तब उसने कविवर की कवित्व शक्ति की प्रशंसा सुनी थी। उसने उन्हें सम्मान पूर्वक बुलाया और वड़े आदर से वस्त्रादि देकर उन्हें सन्तोपित किया । अल्प काल में ही नवाव और कविवर में गहरी मित्रता हो गई उसने कविवर के पास नाम माला, श्रुतवोध, छन्द कोष, आदि अनेक ग्रन्थों का अभ्यास किया । संवत् १६७२ में चीनी किलीचखां का शरीरपात हो गया । कविवर को अपने इस मित्र की मृत्यु से बड़ा शोक हुआ । पुत्रों का वियोग कविवर के तीन विवाह हुए तीनों पत्नियों से आपके ९ बालक हुए किन्तु सभी बालक जन्म समय का क्षणिक हर्प देकर अंत में वियोग के समुद्र में डुवोते चले गए । अंतिम वालक ९ वर्ष का हो गया था कविवर ने इसका पालन पोषण बड़ी सुरक्षा के साथ किया था। बालक वड़ा होनहार था अल्प षय में उसकी वाक्य निपुणता विद्या कुशलता और रूप माधुरी को देखकर लोग उसकी बड़ी सराहना करते थे; किन्तु दुर्दैवकाल को कविवर के जीवन को सुखमय बनाना भीष्ट नहीं था वह तो उन्हें दुख के अवसरों को प्रदानकर उनके
SR No.010269
Book TitleJain Kaviyo ka Itihas ya Prachin Hindi Jain Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchandra Jain
PublisherJain Sahitya Sammelan Damoha
Publication Year
Total Pages207
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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