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________________ कविवर बनारसीदास चालक बनारसीदास की बुद्धि बड़ी तीन थी।. २-३ वर्ष में ही उन्होंने कई पुस्तकों का अध्ययन करके अच्छा ज्ञान प्राप्त कर लिया। उन्होंने दश वर्ष की आयुतक ध्यान पूर्वक अध्ययन किया । उस समय मुगलों के प्रताप का सितारा चमक रहा था उनके अत्याचारों के भय से पीड़ित होकर गृहस्थों को अपने बालक बालिकाओं का विवाह छोटी ही आयु में करना पड़ता था इसलिए १० वर्ष की आयु में ही आपका विवाह कर दिया गया.। विवाह के पश्चात् कुछ समय तक आपका अध्ययन बंद रहा। १४ वर्ष की आयु में आपने पं० देवीदासजी के निकट फिर से पढ़ना प्रारंभ किया इस समय उनका कार्य एकमात्र पढ़ना ही था.। उन्होंने निम्नलिखित ग्रन्थों का अध्ययन किया था। पढ़ी नाम माला शत दोय, और अनेकारथ अवलोय ज्योतिष अलंकार लघु कोक, खंड स्फुट शत चार श्लोक युवावस्था और पतन युवावस्था जीवन में एक ही बार आती है उसे पाकर संयमित रहना टेढ़ी खीर है। नदी के प्रबल पूर में पैरों को स्थिर रख सकना किसी विरले मनुष्य का ही कार्य है।। बनारसीदासजी अब जवान हो गए थे वे यौवन के वेग को नहीं सँभाल सके। उनके पास संपति थी। वे स्वतंत्र थे और अपने पिता के इकलौते पुत्र थे। यह सभी सामग्री उनके विगड़ने के लिए पर्याप्त थी। बस क्या था वे मदोन्मत्त हो गए। उनके सिर पर इश्क बाजी का नशा चढ़ गया।
SR No.010269
Book TitleJain Kaviyo ka Itihas ya Prachin Hindi Jain Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchandra Jain
PublisherJain Sahitya Sammelan Damoha
Publication Year
Total Pages207
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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