SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 125
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कविवर बनारसीदास unna ११३ जो संसार समुद्र से तरने के लिए 'शब्द' रूपी पतवार धारण किये हुए है और शास्त्र का लंगर लेकर ज्ञान के घाट पर उतार देता है । श्रद्धा के थके हुए नेत्रों को जो अंजन के समान है और जो आत्मा के देखने को आरसी है ऐसा वह आत्मवोध है । छत्र धार वैठे घने लोगनि की भीर भार, दीसत स्वरूप सुसनेहिनी सी नारी है । सेना चारि साजि के विराने देश दोड़ी फेरी, फेर सार करें मानो चौसर पसारी है ॥ कहत वनारसी बजाय धौंसा बार बार, राग रस राज्यो दिन चार ही की वारी है । खुल्यो न खजानो न खजानची को खोज पायो, राज खसि जायगो खजाने विन वारी है । राज्य छत्र धारण कर महान राज्य सभा में बैठे हुए बड़े कान्तिवान दिखते हैं, जिनकी अत्यन्त स्नेहवती पत्नी है और जिन्होंने चतुरंगिनी सेना सजकर दूसरे देशों में विजय की दुन्दुभि बजादी है। चारों कोनों में घूमकर जिन्होंने मानो चौपड़ ही बिछा दी है वह आनन्द रस का नगाड़ा बजाकर राग रङ्ग में मग्न हो रहा है किन्तु यह सब केवल चार दिन के लिए ही है । अरे ! यदि आत्म-वैभव के खजाने को नहीं खोल पाया और न ज्ञान खजांची का पता ही लगा सका तो यह राज्य तो चार दिन में ही छीन लिया जायगा फिर विना आत्म धन के खजाने के संसार में उनकी दुर्गति होगी ।
SR No.010269
Book TitleJain Kaviyo ka Itihas ya Prachin Hindi Jain Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchandra Jain
PublisherJain Sahitya Sammelan Damoha
Publication Year
Total Pages207
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy