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________________ प्राचीन हिन्दी जैन कवि wwwwwwwwwwwwwwwwanaNAAM वरदै कविवर ने सुन्दर वरवै छन्दों में पूर्वी भाषा में यह बड़ी ही सरस कविता की है। इसमें सुमति अपने पति चेतन को क्या ही मनोरम उपदेश देती है। बालम तुहूँ तन, चितवन गागरि फूटि । अँचरा गौ . फहराय सरम गैलूटि ॥१॥ पिऊ सुधि श्रावत वन मे पैसिड पेलि । छाड़उ राज डगरिया भयक अकेलि ॥२॥ काय नगरिया भीतर चेतन भूप। करम लेप लिपटा वल ज्योति स्वरूप ॥३॥ चेतन तुहु जनि सोवह नींद अघोर। चार चोर घर मूंसहि सरवस तोर ॥४॥ चेतन भयऊ अचेतन संगत पाय । चकमक में आगी देखी नहिं जाय ॥५॥ चेतन तुहि लपटाय प्रेम रस फाँद । जस राखत घन तोपि विमल निशि चाँद ॥६॥ चेतन यह भवसागर धरम जिहाज । तिहि चढ़ बैठो छाडि लोक की लाज ॥७॥ प्यारे चेतन! तेरी ओर देखते ही पराएपन की गगरी फूट गई दुबिधा का अंचल हट गया और मेरी सारी ही लज्जा छूट गई। ___प्यारे चेतन की सुधि आते ही उसकी खोज करने के लिए राज्य की गली छोड़कर अकेली ही वन में घुस पड़ी।
SR No.010269
Book TitleJain Kaviyo ka Itihas ya Prachin Hindi Jain Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchandra Jain
PublisherJain Sahitya Sammelan Damoha
Publication Year
Total Pages207
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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