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________________ २८ | जैन कथामाला (राम-कथा) सुमाली पुत्र रत्नश्रवा ने अपने वन्धु-बान्धवों को बुलाया और सबके समक्ष उसके साथ विवाह कर लिया। केकसी और रत्नश्रवा सुख-भोग में लीन हो गये। एक रात्रि को केकसी ने स्वप्न देखा कि 'उसके मुख में कोई एक महावलशाली केशरीसिंह प्रवेश कर गया।' रात्रि का अन्तिम प्रहर था केकसी की निद्रा भंग हो गई। गया पर पडी-पड़ी इस विचित्र स्वप्न पर विचार करने लगी। प्रातःकाल अपनी उत्सुकता पति के समक्ष प्रकट की तो रत्नश्रवा ने स्वप्न का फल बताया-'तुम्हारे उदर से अद्वितीय पराक्रमी पुत्र होगा।' केकसी ने महासत्वशाली गर्भ धारण किया । गर्भ के कारण उसकी चेष्टाएँ ही बदल गई। महल में अनेक दर्पण होते हुए भी तलवार की चमक में वह अपना मुख देखती, वाणी में क्रूरता आ गई, गुरुजनों का आदर और उनको मस्तक झुकाना उसने वन्द कर दिया। वह इतनी निडर हो गई कि इन्द्र को भी आजा देने की उसकी अभिलापा होने लगी। उसके हृदय में बार-बार शत्रुओं के सिर पैरों से कुचलने की इच्छा होती । उसके परिणामों में क्रूरता, रौद्रता और हिंसकपने का समावेश हो गया। यह सव गर्भस्थ शिशु का प्रभाव था जो माता की प्रवृत्तियों में - परिलक्षित हो रहा था। हिंसकपलने की इच्छा हो सके हृदय में बार भी आजा ने कर दिया। १ आज भी प्रत्येक गर्भिणी माता पर उसके गर्भस्थ शिशु का प्रभाव पड़ता है। उसकी चित्तवृत्तियों में परिवर्तन हो जाता है । यह वात दूसरी है कि परिवारीजन उन बदली हुई प्रवृत्तियों पर ध्यान न दें। आगत शिश कैसा होगा-पापी या पुण्यात्मा, सदाचारी या दुराचारी-इसका पता . गभिणी की चित्तवृत्ति से लगाया जा सकता है किन्तु कुछ अज्ञानवश और कुछ भौतिकता की चकाचौंध में परिवारी जन. गर्भिणी की चित्तवृत्ति और क्रिया-कलापों का सूक्ष्म अध्ययन नहीं कर पाते । -सम्पादक
SR No.010267
Book TitleJain Kathamala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1977
Total Pages557
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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