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________________ नकली इन्द्र | २१ किष्किधि के पक्षधरों ने प्रतिप्रश्न किया-तो क्या ये विद्याधर नहीं रहे । इनका कुल विद्याधर कुल नहीं है ? –हाँ, अव ये विद्याधर नहीं रहे। इन्हें विद्याधर समाज से अलग समझा जाता है। . -तुम्हारे समझने का क्या मूल्य ? -अभी पता लग जाता है । देखू कैसे तुम इस सुन्दरी को अपने साथ ले जाते हो? -इसमें क्या कठिनाई है, कन्या ने जिसका वरण किया वही उसका पति-और पति को अधिकार है कि पत्नी को अपने घर ले जाय। -स्त्री-रत्न को प्राप्त करने के लिए वाहुवल चाहिए। -वह हममें यथेष्ठ मात्रा में है। स्वयंवर मण्डप में उपस्थित राजा दो दलों में विभक्त हो गयेएक विजयसिंह के पक्ष में तो दूसरे उसके विरोधी। विजयसिंह ने शस्त्र उठाकर आह्वान किया--दिखाओ अपना बल। ____अस्त्र-शस्त्र बाहर निकल आये। वीर एक-दूसरे को चुनौती देने लगे। युद्ध का प्रारम्भ किया विजयसिंह ने। उसने आगे बढ़कर किष्किधि कुमार पर प्रहार कर दिया । एक तलवार का चमकना था कि असंख्य तलवारें चमक उठीं। स्वयंवर-स्थल रणस्थल बन गया । । दासियाँ और नारी समुदाय कुमारी श्रीमाला को लेकर अन्तःपुर में जा छिपी । रह गये वहाँ युद्धप्रिय सुभट । सुभट परस्पर युद्ध करने लगे। रक्त की धाराएँ पृथ्वी पर वह
SR No.010267
Book TitleJain Kathamala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1977
Total Pages557
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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