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________________ १८ | जैन कथामाला (राम-कथा) कण्ठ युद्धप्रिय और अति तेजस्वी का। उसके पराक्रम से शासन सुचारू रूप से चल रहा था। __एक दिन राजा श्रीकण्ठ राजसभा में बैठा था। उसी समय आकाश-मार्ग से कुछ देव-दिमान जा रहे थे। राजा ने वाहर आकर विमान देखे तो उसे ज्ञात हुआ कि वे सव नन्दीश्वर द्वीप में अर्हन्तों की वन्दना के लिए जा रहे थे। उसके हृदय में भी भक्ति भाव का उद्रेक हुआ और वह भी अपने विद्यावल के सहारे उनके पीछे-पीछे चल दिया। श्रीकण्ठ विमानों के पीछे-पीछे चला जा रहा था। उसकी लगन अर्हन्त परमेष्ठी में लगी हुई थी । नगर, वन, सरिता, पर्वत, सागर पीछे छूटते जा रहे थे । एकाएक वह अटक गया। नीचे देखा पर्वत विशेष-वाल्मीकि रामायण में वानरवंश की उत्पत्ति न बताकर वानरों को देवपुत्र ही बताया है। श्रीराम के जन्म लेने के पश्चात् ब्रह्माजी ने देवताओं से कहा कि वे - अपने ही समान वलशाली पुत्रों को उत्पन्न करें। __ वहाँ ऋक्षराज जाम्बवान की उत्पत्ति ब्रह्माजी की जंभाई से हुई बताई गई है । इन्द्र ने वाली को उत्पन्न किया और सूर्य ने सुग्रीव को। हनुमान पवनदेव के पुत्र हुए । वृहस्पति का पुत्र तार वानर था, कुवेर का पुत्र गंधमादन तथा विश्वकर्मा का पुत्र नल । अग्निदेव का पुत्र नील था तथा अश्विनीकुमारों के मैन्द और द्विविद । वरुण का पुत्र सुपेण था और पर्जन्य का शरभ । इनके अतिरिक्त अन्य देवताओं ने और भी करोड़ों वानरों की उत्पत्ति की। ये सभी इच्छानुसार रूप बनाने वाले, अति पराक्रमी और चाहे जहाँ आ-जा सकते थे । इन्द्र पुत्र वाली और सूर्य पुत्र सुग्रीव दोनों परस्पर भाई थे। इस प्रकार भालू, वानर तथा गोलांगूल (लंगूर) जाति के करोड़ों वीर भीत्र ही उत्पन्न हो गये। [वाल्मीकि रामायण, बालकाण्ड]
SR No.010267
Book TitleJain Kathamala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1977
Total Pages557
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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