SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 70
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १४ | जैन कथामाला (राम-कथा) एक वार कुमार श्रीकण्ठ मेरुपर्वत से वापिस आ रहा था। उस समय उसे एक अति रूपवती कन्या दिखाई दी। कन्या भी उसकी ओर प्रेमपूर्वक देख रही थी। दोनों की दृष्टि परस्पर मिली और अंग में अनंग समा गया। श्रीकण्ठ ने कन्या को अनुकूल जानकर उठाया और आकाश-मार्ग से ले चला। दासियों ने नीचे से शोर मचा दिया-'अरे ! पद्मा को कोई लिए जा रहा है।' पना कोई साधारण कन्या नहीं थी, वह राजपुत्री थी। श्रीकण्ठ के शत्रु पद्मोत्तर की वहन और राजा पुष्पोत्तर की लाड़ली पुत्री ! दासियों की पुकार सुनकर राजा पुष्पोत्तर ने सैन्य सहित कुमार श्रीकण्ठ का पीछा किया। भयभीत कुमार राक्षसपति राजा कीर्तिधवल के पास पहुंचा और अपने बहनोई को सभी हकीकत बता दी। कोतिववल ने उसे अभय दिया और अपने पास रख लिया। राजा पुप्पोत्तर की सेना राक्षसद्वीप की ओर बाढ़ के जल की भाँति बढ़ी चली आ रही थी। नीतिवान् कीर्तिधवल ने पुष्पोत्तर राजा के पास अपना दूत भेजा । दूत राजा पुप्पोत्तर के सम्मुख पहुंचा और अभिवादन करके -राजन् ! मैं महाराज कीर्तिधवल का दूत हूँ ! पुप्पोत्तर ने अभिवादन स्वीकार करके पूछा-~-क्या समाचार लाये हो ? दूत ने विनम्र स्वर में उत्तर दिया-महाराज आपका युद्ध करना व्यर्थ है । श्रीकण्ठ अपराधी नहीं है । -~~~क्या कहते हो? किसी की कन्या को बलात् उठा ले जाना भी अपराध नहीं है तो फिर अपराध क्या होता है ?
SR No.010267
Book TitleJain Kathamala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1977
Total Pages557
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy