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________________ राम का मोक्ष गमन | ४६१ अन्त में मृत्यु पाकर चौथी भूमि में गया। उन कपटी देवताओं का कोई शेष नहीं, लक्ष्मण की मृत्यु इसी प्रकार होनी थी ।' यह विचारकर मुनि श्रीराम तप समाधि में समता भाव से स्थित हो गये । एक समय छट्टुम उपवास के पारणे हेतु मुनि राम स्यन्दनस्थल नाम के नगर में गए। उन्हें देखकर लोगों को अत्यधिक हर्ष हुआ । नगर की स्त्रियाँ विभिन्न प्रकार के व्यंजन बनाकर अपने-अपने द्वारों पर आ खड़ी हुई । उनके हाथों में भोजन से भरे पात्र थे । नगर-निवासियों ने तो कोलाहल हर्षित होकर किया किन्तु यही मुनि राम के पारणे में अन्तराय वन गया । उस कोलाहल को सुनकर हाथियों ने अपने बांधने के कीले उखाड़ लिए और घोड़े भड़क गए । मुनि राम उज्झित' धर्म वाला आहार ही ग्रहण करते थे । अतः वे उनसे आहार लिए बिना राजगृह में गए। वहाँ राजा प्रतिनन्दी ने उज्झित धर्म वाले भोजन से उन्हें प्रतिलाभित किया । तत्काल देवों ने वसुधारा आदि पाँच दिव्य किए । मुनि राम जंगल में वापिस लौट गए। हाथियों के कीले उखाड़ने और घोड़ों के भड़कने से कृपालु राम का हृदय द्रवित हो गया । वे सोचने लगे यदि पशु उत्पात कर देते तो मनुष्य पीड़ित होते हैं । पशुओं के मन में उत्तेजना न हो और कोई प्राणी उनके कारण कष्ट न पायेयह सोचकर मुनि राम ने अभिग्रह लिया - 'यदि वन में ही शुद्ध आहार मिलेगा तो पारणा करूँगा, अन्यथा नहीं ।' : उज्झित आहार का अभिप्राय है— व्यक्त भोजन, भिखारियों को देने के लिए अलग निकालकर रखा हुआ भोजन, परिवार के सभी लोगों के भोजन कर लेने के पश्चात वचा हुआ भोज्य पदार्थ |
SR No.010267
Book TitleJain Kathamala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1977
Total Pages557
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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