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________________ सीता, सुग्रीव आदि के पूर्वभव | ४७५ . सीता और कृतान्तवदन उग्र तप करने लगे। कृतान्तवदन तो देह त्यागकर ब्रह्मदेवलोक में देव हुआ। सीता साठ वर्ष तक निर्मल श्रमणाचार पालन करती रही। उसने विविध प्रकार के तप किये और तीस अहोरात्रि (एक मास) के अनशनपूर्वक मरण करके बावीस सागर की आयु वाला अच्युतेन्द्र वनी।। , -त्रिषष्टि शलाका ७।१० -~-उत्तर पुराण, पर्व ६७, श्लोक ६०-१५४ पर्व ६८, श्लोक ३-२७ निदान कर लिया। मरकर वह सौधर्म देवलोक में देव हुआ और वहाँ च्यवकर दशानन ! उसकी आयु चौदह हजार वर्ष की थी। (पर्व ६८, श्लोक ३-७ और १२) (३) सीताजी के निदान की घटना यह है किसी एक दिन लंका का राजा दशमुख अपनी रानी के साथ वन-क्रीडा करने गया । वहाँ विजया पर्वत के अचलक नगर के स्वामी राजा अमिनवेग की पुत्री मणिमती विद्या सिद्ध कर रही थी। उसे देखकर वह कामासक्त हो गया । उस कन्या को वश में करने के लिए उस दुष्ट ने उसकी सिद्ध की हुई विद्या हरण कर ली। विद्या का हरण जानकर वह कन्या रावण पर वहत क्रोधित हुई । उसने निदान किया कि 'मैं इसकी पुत्री होकर इसकी मृत्यु का कारण वनूंगी।' आयु के अन्त में प्राण त्यागकर मणिमती मन्दोदरी के गर्भ से पुत्री रूप में उत्पन्न हुई। लंका में भांति-भांति के उपद्रव होने और नैमित्तिकों के कहने के कारण रावण की आजा से मारीच उसे राजा जनक के राज्य में गाढ़ आया। वही कन्या राजा जनक को प्राप्त हुई और सीता के नाम से जगविख्यात हुई। (पर्व ६८, श्लोक १३-२७)
SR No.010267
Book TitleJain Kathamala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1977
Total Pages557
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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