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________________ ४७२ | जन कथामाला (राम-कथा) " केवली जयभूपण से सभी के पूर्वभव सुनकर बहेत से लोगों को सवेग हो गया। - राम के सेनापति कृतान्तवदन ने तत्काल प्रव्रज्या ग्रहण कर ली। केवलो मुनि को नमन करके राम-लक्ष्मण सीता के पास आये। सीता को देखकर राम विचारने लगे-'यह सीता कमल से भी कोमल है। शीत और आतप को कैसे सह सकेगी?' किन्तु उसी समय उनकी विचारधारा पलटी-'अवश्य सह लेगी । जो रावण जैसे प्रतापी के उपसर्गों के समक्ष मरु की भांति अडिग रही। जलती हुई ज्वाला में कूद पड़ी, उसके धैर्य और प्रतिज्ञा पालन में शंका विशेष-(१) उत्तर पुराण में श्रीराम-लक्ष्मण के पूर्वजन्म की एक अन्य कथा दी गई है। वह कथा संक्षेप में निम्न है :- . . इसी भन्तक्षेत्र के मलय देश में रत्नपुर नगर के स्वामी महाराज प्रजापति राज्य करते थे । उनकी गुणचूला नाम की रानी के गर्भ से चन्द्रचूल नाम का पुत्र उत्पन्न हुआ । वह कुमार मन्त्री-पुत्र स्वर्णचूल से बहुत प्रेम करता था । माता-पिता के अधिक लाड़-प्यार से वे दोनों ही दुराचारी हो गये। किसी एक दिन उसी नगर के निवासी कुवेर सेठ ने अपनी पुत्री कुवेरदत्ता का विवाह नगरवासी सेठ वैश्रवण की स्त्री गौतमा के उदर से उत्पन्न श्रीदत्त नाम के पुत्र के साथ करना निश्चित किया। एक सेवक द्वारा कुवेन्दत्ता के रूप की प्रशंसा सुनकर राजकुमार चन्द्रचूल उसे अपने वश में करने का उपाय करने लगा। इस बात को जानकर वैश्यों का समूह राजा के पास राजपुत्र की शिकायत लेकर पहुंचा। न्यायप्रिय राजा ने कुमार को पकड़वा मँगाया और उसे मृत्यु दण्ड दिया। लोगों के समझाने पर भी राजा नहीं माना । अन्त में 'मैं स्वयं कुमार को दण्ड दूंगा' यह कहकर मन्त्री कुमार को अपने साथ ले गया।
SR No.010267
Book TitleJain Kathamala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1977
Total Pages557
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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