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________________ . शत्रुघ्न के पूर्व भव | ४१६ इसी कारण इन दोनों में इतना प्रेम है और शत्रुघ्न ने मथुरा नगरी का ही राज्य लेने का आग्रह किया । यह वृत्तान्त सुनाकर दोनों केवलीमुनि तो वहाँ से विहार कर गये और राम-लक्ष्मण शत्रुघ्न आदि अपने महल को लौट आये।. . -त्रिषष्टि शलाका ७1८ -उत्तर पुराण, पवं ६८६८८-८९ पहले उसे भी चना ।' राजा लवणासुर लवणासुर ही तुम्हारे अधीन नहीं है। पहले उसे विजय करो तब स्वर्ग लोक की ओर देखना।' राजा मान्धाता लवणासुर को जीतने गये तो लवणासुर ने इसी शूल से उनको सम्पूर्ण सेना सहित भस्म कर दिया। (८) लवणासुर को मारने हेतु अयोध्या से जाते समय शत्रुघ्न ऋपि वाल्मीकि के आश्रम में ठहरे थे। उसी रात्रि को सीताजी के कुश और लव दो पुत्रों का जन्म हुआ। (E) शत्रुघ्न लवणासुर वध के पश्चात सूरसेन जनपद की स्थापना करते हैं और बारह वर्प वाद श्रीराम से मिलने जाते हैं तथा अयोध्या में सात दिन रहकर राम की आज्ञा से वापिस मधुवन आ जाते हैं। [वाल्मीकि रामायण : उत्तर काण्ड (३) तुलसीकृत में लवणासुर का वध अश्वमेघ यज के दौरान दिखाया गया है । शत्रुघ्न जी उसे मारने जाते हैं। अन्य बातों के अतिरिक्त. यहाँ विशेपता यह है कि लवणासुर शिवजी के त्रिशूल को लेकर आता है और उसके आघात से शत्रुघ्न मूच्छित हो जाते हैं। कुछ समय बाद शत्रुघ्न सचेत हो जाते हैं और राम का स्मरण करके उसे वाण से मार डालते है । लवणासुर के साथ-साथ कैटम और लवणासुर के पुत्र मातंग का वध भी दिखाया गया है । [लवकुश काण्ट, दोहा २६-४२]
SR No.010267
Book TitleJain Kathamala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1977
Total Pages557
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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