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________________ दत्त राजा सिहर तक तो वह माया प्रसन्न हाकतनी ही भूमि । सत्य शत्रुघ्न के पूर्वभव | ४१७ अंक समझ गया कि उसका नाम अचल है। अंचल वहाँ से उठकर चल दिया और कौशाम्बी नगरी में जा पहुंचा। वहाँ उसे इन्द्रदत्त राजा सिंहगुरु के पास धनुर्विद्या का अभ्यास करता दिखाई दिया। कुछ देर तक तो वह उन्हें देखता रहा तत्पश्चात उसने अपना वाण विद्या कौशल उन्हें दिखाया । प्रसन्न होकर इन्द्रदत्त ने उसे अपनी पुत्री दत्ता अर्पण की और साथ में कितनी ही भूमि । इसके पश्चात अचल ने अंग आदि अनेक राज्य विजय कर लिए। वह सैन्य सहित मथुरा नगरी पर चढ़ आया । भानुप्रभ आदि भाइयों ने उसका मुकाविला किया तो उन्हें पकड़कर बन्दी बना लिया। - वृद्ध राजा चन्द्रप्रभ ने पुत्रों के छुड़ाने के लिए मन्त्री को भेजा। मन्त्री अचल को देखकर सब कुछ समझ गया । उसने आकर बताया'महाराज ! वह तो आपका ही पुत्र है ।' हर्षित होकर राजा ने अचल को आदर सहित नगर-प्रवेश कराया। सबसे छोटा होने पर भी राजा ने उसी का राज-तिलक कर दिया और भानुप्रभ आदि की दुर्मन्त्रणा के - कारण उन्हें देश निकाले का दण्ड दिया। किन्तु अचल ने विनती करके भाइयों का दण्ड क्षमा करा लिया। सभी भाई प्रेमपूर्वक रहने लगे। ....एक वार अचल ने देखा कि एक पुरुष नाट्यशाला में प्रवेश करने -:का इच्छुक है और द्वारपाल उसे धक्के मारकर बाहर निकाल रहे . हैं । अचल ने ध्यान से देखा तो पहचान गया कि वह तो उसका उपकारी अंक है। .. - सेवकों को भेजकर उसने अंक को अपने पास बुलवा लिया। उचित आदर-सत्कार के बाद उसने अंक को उसकी जन्मभूमि श्रावस्ती - का राजा बना दिया । दोनों मित्र साथ-साथ रहते हुए राज्य-संचालन .. - करने लगे। कुछ समय पश्चात दोनों ने समुद्राचार्य के चरणों में श्रामणी - दीक्षा ले ली। निरतिचार संयम की साधना करके उन्होंने कालधर्म प्राप्त किया और ब्रह्मदेवलोक में देव पर्याय पाई। ::. है। हर्षित होकर वताया ने उसी कहत नगर-प्रवेश भाइयों का दस निकाले का दण्ड बार भानुप्रभ आदि पर भी राजा का इच्छुकार अचल ने देखा लिया। सभी भाई अचल ने विनती करके
SR No.010267
Book TitleJain Kathamala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1977
Total Pages557
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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