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________________ ___४१४ | जैन कथामाला (राम-कथा) भाव संयम ग्रहण कर लिया । संयम के प्रभाव से वह देह त्यागकर सनत्कुमार देवलोक में महद्धिक देव हुआ । उसी समय विमानवासी देवों ने पुष्प वृष्टि करके उद्घोष किया--'मधु देव जयवन्त हो।' दिव्यास्त्रों की विशेषता होती है कि वे व्यक्ति विशेष के लिए ही होते हैं और उसके मरते ही देने वाले देवता के पास वापिस चले जाते हैं । दिव्य त्रिशूल भी चमरेन्द्र के पास पहुंच गया। त्रिशूल को देखते ही चमरेन्द्र ने अवधिज्ञान से सब कुछ जान लिया। उसे अपने मित्रघाती शत्रुघ्न पर वड़ा क्रोध आया और वदला लेने उद्यत को हुआ। उसी समय गरुड़पति इन्द्र ने पूछा -आप कहाँ जा रहे हैं ? . -अपने मित्रघाती शत्रुघ्न को मारने मथुरा नगरी जा रहा हूँ। -चमरेन्द्र ने उत्तर दिया। -रावण के पास धरणेन्द्र प्रदत्त उत्कृष्ट अमोघविजया शक्ति “थी उसे भी महापुण्यवान लक्ष्मण ने मार गिराया तो यह मधु कौन चीज है। - -वह शक्ति तो विशल्या के पूर्व-जन्म के तप-तेज के कारण पराजित हो गई थी। शत्रुघ्न के पास ऐसा कोई सहायक नहीं है। —हे चमरेन्द्र ! महापुण्यशाली राम-लक्ष्मण और विशल्या जैसी तपोतेज धारिणी उसकी रक्षा कर लेंगी। -कुछ भी हो मैं उसे मारने जाऊंगा अवश्य । यह कहकर चमरेन्द्र वहाँ से चल दिया। मथुरा पहुँचकर उसने देखा प्रजा सुखी थी। उसने विचार किया-'पहले प्रजा में उपद्रव करके शत्रुघ्न को व्याकुल कर दूं, तब मारना सरल होगा।' इस · विचार के अनुसार चमरेन्द्र ने मथुरा की प्रजा को रोग महामारियों आदि से व्याकुल कर दिया। कुल देवता ने आकर शत्रुघ्न को चेतावनी दी कि
SR No.010267
Book TitleJain Kathamala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1977
Total Pages557
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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