SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 47
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ शरणागत वत्सल इतने कि विभीषण के लिए उनके हृदय में अपार चिन्ता है । लक्ष्मणः के, शक्ति लग जाने पर वे दुःखी स्वर में कहते हैं 'मुझे केवल विभीषण की चिन्ता है । इसका क्या होगा ?. ..... . उन्होंने रावण-वधः अन्याय के प्रतिकार के लिए किया । स्त्रीहरण की परम्परा को नष्ट करने के लिए इतने दुःख झेले । ...... ...... उदारता में तो उनकी समानता मिलना ही कठिन है। अपशब्द कहने वाले कपिल ब्राह्मण को भी इच्छित दान देते हैं । लंका का राज्य विभीषण को देते हुए भी सकुचाते हैं कि कुछ नहीं दिया। ___ निस्पृहता और त्यागप्रवृत्ति इतनी है कि बड़े होते हुए भी राज्य स्वयं नहीं ग्रहण करते, छोटे भाई लक्ष्मण को दे देते हैं। राम का वचन-पालन, दृढ़ प्रतिज्ञा तो प्रसिद्ध ही है-'प्राण जाय पर वचन न जाई।' . . . .:::::::::::: । ये सभी गुण सदा से ही ग्रहणीय रहे हैं और सदा ही रहेंगे। इसीलिए तो राम मर्यादा पुरुषोत्तम कहलाये। .............. सीताजी का पातिव्रत-धर्म और कष्ट-सहिष्णुता तो भारतीय नारी का सदा ही आदर्श रहा है। आज भी भारतीय नारी सीता कहलाने में गौरव का अनुभव करती है । . . ..... ................. ...श्रीराम का पावन-चरित्र एक-पावन गंगा की धारा है। जिसमें अन्तः कथाओं रूपी अनेक नाले आकर मिले और सब गंगा बन गये। इनसे गंगा अपवित्र नहीं हुई वरन ये नाले ही पवित्र हो गये। .................. .. :: सम्प्रदाय मोह में पड़कर राम के चरित्र को सीमाओं में बांध लेना न तो उचित है और न सम्भवः ! यह तो उन्मुक्त गंगा है और उन्मुक्त ही रहेगी। ... .. .. . जैन रामायण की विशेषताएं : ... .... जैन रामायण की विशेषता है तथ्यों का यथातथ्य निरूपण । सांप्रदायिक वैमनस्य, प्रतिपक्ष भाव अथवा ईर्ष्या के कारण किसी का भी अतिरंजित दुरा - या अच्छा चित्रण जैन साधुओं को अभीष्ट नहीं था। वैदिक परम्परा में राम
SR No.010267
Book TitleJain Kathamala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1977
Total Pages557
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy