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________________ ३६८ | जैन कथामाला (राम-कथा) श्रीराम, लक्ष्मण, सुग्रीव, विभीषण आदि ने केवली भगवान की वन्दना की और वहाँ से चल कर लंका में प्रवेश किया। उस समय विभीषण नम्रतापूर्वक आगे-आगे चलता हुआ लंका का परिचय देता जा रहा था । विद्याधर और राक्षस स्त्रियाँ मंगलगान कर रही थीं। . आगे चलते-चलते देवरमण उद्यान आया। वहाँ राम को विरहविधुरा चन्द्रमा की लीक के समान सीता दिखाई दो। मानो राम के प्राण ही लौट आये हों, उनका सम्पूर्ण शरीर रोमांचित हो गया । सती भी पति को देखकर उठ खड़ी हुई। राम ने आगे बढ़कर सीता को . प्रेम-विह्वल होकर अपने पार्श्व (बगल) में विठा लिया। सीता की करुणदशा देखकर लक्ष्मण कातर हो गये। उनकी आँखों से नीर वहने लगा । कण्ठ से शब्द नहीं निकल सके । झुक गया सीता के चरणों में । देवर की यह दशा देखकर सीता भी करुणार्द्र हो गई । गद्गद स्वर से वोलो-'चिरकाल जोओ, सुखी रहो और विजय पाओ।' और उनका ललाट चूम लिया । धन्य हो गये लक्ष्मण सीता का आशीर्वाद प्राप्त करके । इसके पश्चात भामण्डल ने वहिन को प्रणाम किया और आशीर्वाद पाया। सुग्रीव आदि ने भी परिचय देते हुए सीताजी को प्रणाम किया। सभी को सती की आशिप मिलो । अंजनिनन्दन हनुमान को तो परिचय देने की आवश्यकता ही नहीं थी। उन्होंने वार-बार माथा टेका और आशीर्वचन प्राप्त किये। भामण्डल आदि की प्रेरणा से राम-सीता भुवनालंकार हाथी पर । वैठे । उस समय सोता-राम को युगल जोड़ी अति शोभायमान हो रही थी। सीता सहित राम-लक्ष्मण रावण के महल में पहुंचे। उसकी अद्भुत शोभा देखकर हर्ष विभोर हो गये। . विभीषण राम-लक्ष्मण-सीता सुग्रीव आदि को अपने घर ले गया और भोजनादि से उनका सत्कार किया। उसके पश्चात् श्रीराम को सिंहासन पर विठाकर विभीपण वोला
SR No.010267
Book TitleJain Kathamala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1977
Total Pages557
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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