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________________ ) ( ४१ प्रदेश में हिम (बर्फ) का ही साम्राज्य है । उसके बाह्यान्तर भागों और रूस की नदी बोल्गा तट के निवासी काल्पुकों में भी प्राचीन काल से ही राम चरित चर्चित रहा । वहाँ के सुलतान कुलइखाँ (सन् १९८२ - १२५१ ) के गुरु साचा पण्डित आनन्दध्वज ने 'एर्देनियिन साङ, सुवाशिदि' नामक ग्रन्थ की रचना की । ऐनि का अर्थ है रत्न ओर सुवाशिदि का सुभाषित | इस ग्रन्थ पर रिन्छेनूपाल्साङ पो ( रत्न श्री भद्र) की टीका प्राप्त होती है । उसमें राम कथा का वर्णन है । वहीं रावण की मृत्यु का कारण बताते हुए कहा है ओलान्- दुर आख वोलुग्सान येखे खुमुन् देभि आलिया नागादुम्बा । ओख्यु आमुर सागुरबुवा इद्गेन् ओम्दागान् दुर नेङ उलु शिनुग्युगाइ । ओल्ज गुसेलदुर ने येसे शिनुग्सेन् उ गेम् इयेर । ओरिदु मान्गोस उन् निगेन् खागान् लंगा-दुर आलाग्दासान् । अर्थात् - जन-नेताओं, राजाओं तथा महान पुरुषों को व्यर्थ के आमोदप्रमोद एवं इन्द्रियों की लंपटता में लीन नहीं होना चाहिए। काम, लोभ, मोह आदि में अतिलीन होने के दोष से राक्षसराज लंका में मारा गया । इण्डोनेसिया में भी राम कथा का प्रचार-प्रसार हुआ । वहाँ की ११वीं सदी को 'कवि' भाषा में योगीश्वर द्वारा रचित रामायण को वहाँ का आदि काव्य होने का गौरव प्राप्त हुआ है । , भरत मिलाप के पश्चात् भरत को अयोध्या जाकर शासन सूत्र संचालन की प्रेरणा देते हुए श्रीराम उनसे प्रेम पूर्ण शब्दों में कहते हैं " - शील रहयु रक्षन्, रागद्वेष हिलङकॅन् । किम्बुरु य त होलन्, शून्याम्वक्त लवन् अवक् ॥ न्याङ विनय गॅगॉन आसि सोलः कि नलुलुतन् । चव भिमन सम्पत्तन्तकं प्रभु अर्थात् - सुशील की रक्षा करो, राग-द्वेष छोड़ दो, और शरीर को इनसे शून्य करो। इस प्रकार सब लुभाने वाले विषयों का परिवर्जन करो । मेरे अनुज ! बहुत अभिमानी प्रभु का पतन हो जाता है । #sfa: 11 (3122) ईर्ष्या नष्ट करो, मन 1
SR No.010267
Book TitleJain Kathamala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1977
Total Pages557
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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