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________________ ३८८ | जैन कथामाला (राम-कथा) दशमुख ने यह दृश्य देखा तो अवाक रह गया उसका अमोघ अस्त्र भी लक्ष्मण के वश में हो गया। उसके मानस में केवली अनन्तवीर्य के वचन कौंच गये-'भविप्य में होने वाले वासुदेव के हाथों परस्त्री प्रसंग के दोष के कारण तुम्हारी मृत्यु होगी।' उसे अपनी मृत्यु साक्षात् दिखाई देने लगी। लक्ष्मण ने उसे विचार-मग्न देखकर चेतावनी दी -रावण ! अव भी समय है । सीताजी को वापिस देकर अग्रज श्रीराम से क्षमा मांग और सुख से लंका का राज्य भोग। इन नीति पूर्ण शब्दों को सुनकर भी अभिमानी का अभिमान कम न हुआ वरन् और भी बढ़ गया । दर्पपूर्वक बोला -प्राण रहते में राम से क्षमा मांगकर सीता को वापिस न दूंगा। तो अब तेरे प्राण ही न रहेंगे। -लक्ष्मण ने उत्तर दिया और घुमाकर चक्र उस पर दे मारा। __ साक्षात् कालचक्र के समान ही चक्क गया और रावण का शिरच्छेद करता हुआ वापिस लक्ष्मण के हाथ में आकर ठहर गया । लंकेश का अभिमानी सिर जमीन की धूल चाटने लगा। उसका घड़ रथ से गिरा और धूल में जा पड़ा। रक्त के फब्बारों से भूमि लाल हो गई। ___ रावण का शरीर तो युद्ध-भूमि में पड़ा था और उसकी आत्मा ज्येष्ठ कृष्णा ११ (एकादशो) दिन के पिछले प्रहर के समय चौथे नरक में दुःख भोगने के लिए चली गई। यह था परस्त्री प्रसंग के दोष का फल | और सती सीता को सन्तापित करने का परिणाम । दशमुख की मृत्यु होते ही आकाश से देवों की जय-जय ध्वनि के
SR No.010267
Book TitleJain Kathamala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1977
Total Pages557
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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