SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 420
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३६४ | जैन कथामाला (राम-कथा) विभीषण ने स्थिति स्पष्ट को - इस शक्ति द्वारा आहत पुरुष के शरीर में एक रात्रि तक ही प्राण रहते हैं । सूर्योदय के साथ ही उसके प्राण शरीर से बाहर निकल जाते हैं । इसलिए स्वामी ! लक्ष्मणजी का जीवन बचाने की चिन्ता तुरन्त कीजिए । राम ने उनकी बात स्वीकार कर ली । सुग्रीव आदि वानरों ने विद्याबल से राम-लक्ष्मण के चारों ओर चार-चार द्वार वाले सात किलों का निर्माण किया । पूर्व दिशा के द्वाररक्षकों का भार सँभालासुग्रीव, हनुमान, तार कुन्द, दधिमुख, गवाक्ष और गवय ने, उत्तर दिशा के द्वारों पर अंगद, कर्म, अंग, महेन्द्र, विहंगम, सुषेण और चन्द्ररश्मि जा बैठे । पश्चिम दिशा के द्वारों की रक्षा की-नील, समरशील, दुर्धर, मन्मथ, जय, विजय और सम्भव ने तथा दक्षिण दिशा के द्वार पर भामण्डल, विराध, गज, भुवनजित, नल, मैंद और विभीषण रहे। राम और लक्ष्मण को बीच में रखकर सुग्रीव आदि सभी चौकसी करने लगे । , 'आज लक्ष्मण मारा गया' यह सोचकर रावण को क्षणभर के लिए तो सन्तोष हुआ किन्तु इन्द्रजित, कुम्भकर्ण आदि की स्मृति आते ही उसका हर्ष शोक में बदल गया । राजमहल से रानियों के करुणक्रन्दन की आवाजें आने लगीं । किसी ने आकर सीता से भी कह दिया- 'रावण की शक्ति से आज लक्ष्मण मारा गया है और भाई के स्नेह के कारण प्रातः तक राम भी मर जायेंगे ।' や वज्र के समान इन कठोर शब्दों को सुनकर सीता मूच्छित हो गई। रक्षा करने वाली राक्षसियों ने जल सिंचन किया तो सचेत होकर रुदन करने लगी Mig
SR No.010267
Book TitleJain Kathamala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1977
Total Pages557
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy