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________________ - लक्ष्मण पर शक्ति-प्रहार | ३६१ बालीपुत्र चन्द्ररश्मि आमने-सामने आ डटे। सभी में भयंकर युद्ध होने लगा। . ___ इन्द्रजित ने लक्ष्मण पर तामस' अस्त्र छोड़ा तो उन्होंने उसका निवारण पवनास्त्र से कर दिया। ___ जब इन्द्रजित ने ही दिव्यास्त्र का प्रयोग कर दिया तो लक्ष्मण ही क्यों चूकते । उन्होंने नागपाश द्वारा इन्द्रजित को वाँध लिया और विराध को आज्ञा दी' -इसे रथ में डालकर शिविर में ले जाओ। विराध उसे शिविर में ले गया। श्रीराम ने भी कुम्भकर्ण को नागपाश में जकड़ दिया और उनकी आज्ञा से भामण्डल उसे शिविर में ले गया। राम के पक्ष के अन्य योद्धाओं ने भी अपने प्रतिद्वन्द्वी राक्षस: सुभटों को वाँध लिया और अपने शिविर में ले गये। रावण ने देखा कि उसके पक्ष के सभी सुभट बन्दी हो चुके हैं और वह अकेला ही रह गया है तो शोक से व्याकुल हो गया । किन्तु युद्ध-भूमि में शोक नहीं क्रोध कार्यकारी होता है। उसने विभीपण पर त्रिशूल छोड़ा। लक्ष्मण ने अपने तीक्ष्ण वाणों से उसे बीच में ही केले के पत्ते की भाँति विदीर्ण कर दिया। त्रिशूल के निष्फल हो जाने पर रावण ने क्रोधित होकर धरणेन्द्र प्रदत्त अमोघविजया शक्ति का स्मरण किया । धक्-धकायमान प्रज्वलित अग्निशिखा जैसी तड़-तड़ शब्द करती हुई शक्ति आकाश में चक्कर काटने लगी। उसके प्रबल तेज के समक्ष आकाश में युद्ध गया १ तामस अस्त्र के प्रयोग से दूर-दूर तक अँधेरा फैल जाता है। चारों ओर अन्धकार छा जाता है। --सम्पादक
SR No.010267
Book TitleJain Kathamala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1977
Total Pages557
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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