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________________ युद्ध का दूसरा दिन | ३५५ इस हाहाकार से वीर कुम्भकर्ण की मूच्छी टूटी तो उसे समीप ही हनुमान दिखाई दे गये । उसने अवसर का लाभ उठाया और पूरी शक्ति से गदा प्रहार किया। अचानक प्रहार से हनुमान मूच्छित हो गये तो कुम्भकर्ण ने उन्हें हाथों में उठाया और वगल में दवाकर लंका की ओर चल दिया। । श्रीराम के पक्ष के तीनों महावीरों का पराभव देखकर विभीषण चिन्तित हो गया। वह तुरन्त श्रीराम से बोला -स्वामी ! अपने पक्ष के तीनों वीरों (भामण्डल, सुग्रीव और हनुमान) का पराभव हम पर वज्रपात है। आप मुझे आज्ञा दीजिए कि मैं उन्हें वन्धनमुक्त कराके लाऊँ। विभीषण अभी बात ही कर रहा था कि रणक्षेत्र में सुग्रीव-पूत्र अंगद कुम्भकर्ण से आक्षेप युद्ध' करने लगा। अंगद की इस नोचखसोट से बचने के लिए कुम्भकर्ण ने हाथ ऊपर उठाया तो हनुमान स्वतन्त्र हो गये। कुम्भकर्ण हाथ मलता ही रह गया। अव क्या हो सकता था ? __ श्रीराम से आज्ञा लेकर विभीषण युद्ध क्षेत्र में आया । उसे देखकर इन्द्रजित और मेघवाहन ने सोचा-'यह विभीषण हमारा काका (पिता का छोटा भाई) है । इसके साथ कैसे युद्ध करेंगे ? शत्रु तो नागपाश में बँधे हुए ही मर जायेंगे। चलो, यहाँ से खिसक चलें। पूज्य और गुरुजनों के सामने न पड़कर चले जाने में न अपवाद होता है और न लज्जा। दोनों भाई वहाँ से चले गये। विभीषण आया तव तक मैदान खाली था-न वहाँ इन्द्रजित था न मेघवाहन । १ आक्षेप युद्ध का अभिप्राय है-प्रहार करके तुरन्त इधर-उधर भाग जाना। जैसा वानरों का चपल स्वभाव होता है वैसा ही यह युद्ध भी था । -सम्पादक
SR No.010267
Book TitleJain Kathamala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1977
Total Pages557
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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