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________________ हनुमान को पसीना आ गया था । वह उन्होंने पोंछा तो मकराकृति राक्षसी 'उसे पी गई । उसी से वह गर्भवती हुई और मकरध्वज नाम का पुत्र हुआ। यह हनुमान का पुत्र था ) . ऐसी विचित्र विशेषताएँ जैन परम्परा में नहीं हैं। यहाँ हनुमान को आजन्म ब्रह्मचारी नहीं माना गया है। उनका बल-पौरुष, विवेक एवं संयम . तो-जगविख्यात है ही। . ..... . रावण ... - वैदिक परम्परा का रावण तो पाप की साक्षात् मूर्ति ही है । उसने तपस्या आदि द्वारा जो कुछ भी शक्ति प्राप्त की उसका उसने अन्याय और उत्पीड़न में ही प्रयोग किया । वह स्थान-स्थान पर स्त्रियों का शीलभंग करता है, उन्हें । वलात् हर ले जाता है । ऋषियों का तो वह -घोर शत्रु ही है. उन्हें भांतिभांति से तंग करता है, कर (टैक्स) के रूप में उनका रक्त. लेता है, यज्ञों का .. विध्वंस करता है। समस्त. धार्मिक क्रियाओं का विरोधी है।. देवताओं के ... उत्पीड़न में उसे आनन्द आता है । देवराज इन्द्र... को वन्दी बना लेता है, यम को उसके सामने युद्धक्षेत्र से भागना पड़ता है, कुवेर को वह लंका से निकाल . वाहर करता है--सभी देवता उसके सामने निरीह से हो जाते हैं. । अपनी स्त्रैण्यता के कारण उसे कई वार शाप भी मिलते हैं-कभी ब्रह्मा द्वारा तो.... कभी वैश्रमण द्वारा और कभी शीलवती नारियों द्वारा । फिर भी वह अपनी .... वासना को वश में नहीं रख पाता और सीता की सुन्दरता पर मोहित होकर .. छलपूर्वक उसका अपहरण कर लेता है। सीता. का. अंकशायिनी न बनाने का कारण उसके चरित्र की दृढ़ता न होकर उन शापों का भय है.जो लमे अनेक बार मिल चुके थे। . . किन्तु जैन परम्परा का रावण ऐसा नहीं है। वह यज्ञ-विरोधी तो है लेकिन सिर्फ हिंसक यज्ञों का ही.। वह ऋषियों को कभी भी उत्पीडित नहीं - करता ! स्त्रियों को सद्धर्म पालन की प्रेरणा देता है, जैसा कि उसने नलकूबर की पत्नी उपरम्भा के साथ किया । उसने जहाँ भी कदम रखा लोगों को
SR No.010267
Book TitleJain Kathamala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1977
Total Pages557
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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