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________________ : : रावण का मुकुट-भंग सीताजी का मौन हनुमान ने आशीर्वाद भी समझा और स्वीकृति भी। उन्होंने उद्यान को उजाड़ना प्रारम्भ कर दिया। उद्यान-रक्षको ने मुद्गर आदि अस्त्रों द्वारा उन्हें रोकना चाहा तो वृक्ष उखाड़कर हनुमान उनके पीछे भागे । भयतीत होकर रक्षक रावण के पास गये और उसे सम्पूर्ण समाचार कह सुनाया। __ उद्यान की रक्षा के लिए रावण ने अपने पुत्र अक्षकुमार को आना दी। पिता की आज्ञा से अक्षकुमार देवरमण उद्यान में आया आर अपना वल प्रदर्शित करने लगा। कुछ समय तक तो हनुमान उससे - क्रीड़ा करते रहे और अन्त में उसे यमलोक को विदा कर दिया। अक्षकुमार की मृत्यु का समाचार पाकर इन्द्रजित क्रोध से पागल हो गया। पिता से आज्ञा लेकर तुरन्त उद्यान में आया और दर्पपूर्वक बोला -अरे मूर्ख ! अव तू काल के गाल में आ गया है। मुझसे वच कर जा नहीं सकता। -रणक्षेत्र में जिह्वा नहीं, शस्त्र चलाये जाते हैं । —हनुमान का प्रत्युत्तर था। इन्द्रजित की कोपारिन में घी पड़ गया। वह और उसके सुभंट जीन-जान से युद्ध करने लगे। हनुमान ने अकेले ही उनको विह्वल
SR No.010267
Book TitleJain Kathamala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1977
Total Pages557
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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