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________________ : 5: लंका में प्रवेश प्रातःकाल लंकासुन्दरी से मधुर शब्दों में विदा लेकर हनुमान ने लंका में प्रवेश किया । सर्वप्रथम वे विभीपण के निवास पर पहुँचे और अपना परिचय देकर बोले—' - आप लंकापति रावण के भाई हैं । इसीलिए आप उससे कहकर सीताजी को वापिस पहुँचवाने की व्यवस्था कीजिए । दुःखी स्वर में विभीषण ने उत्तर दिया - वीर हनुमान ! मैंने तो पहले भी एक वार प्रयास किया था किन्तु वह माना नहीं । अपने वल के मद में अन्धा है ।" — भद्र ! संसार में एक से एक वली मौजूद हैं। उसे इस अधर्माचरण से विमुख करो अन्यथा लंका का सर्वनाश हो जायगा । -यह तो मैं भी जानता हूँ पर करूँ क्या, विवश हूँ | - एक बार फिर प्रयास कर लो, शायद सफलता मिल जाय और रावण की मृत्यु टल जाय । - हनुमान ने कहा । विभीषण ने स्वीकृतिसूचक सिर हिलाया तो हनुमान ने उसे समझाने का प्रयास किया - - विभीषण ! यों तो रावण स्वयं समझदार है और आपकी शुभवृत्तियाँ भी जग जाहिर हैं लेकिन इतना समझा देना कि परस्त्री
SR No.010267
Book TitleJain Kathamala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1977
Total Pages557
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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