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________________ उपसर्ग शान्ति | ३२१. विमान से हनुमान ने नीचे की ओर दृष्टि डाली तो दो मुनि कायोत्सर्ग में लीन दिखाई पड़े और समीप ही तीन निर्दोष अंग वाली कुमारियाँ विद्या साधन करती हुईं । अभी हनुमान नीचे उतरने का , प्रयास कर ही रहे थे कि अचानक दावानल जल उठा। चकित रह. गये वे । तुरन्त विद्यावल से मेघों को सृष्टि की और जल बरसाकर' दावानल शान्त कर दिया। उन्होंने उतरकर ध्यानमग्न मुनियों की वन्दना की। उसी समय तीनों कन्याएँ उठी और मुनियों की तीन प्रदक्षिणा देकर नमन किया । हनुमान को वहाँ वैठा देखकर उनसे बोली -हे परमाहत ! तुमने हमारा उपसर्ग टालकर वहुत अच्छा. किया । हमारी विद्याएँ अल्प समय में ही सिद्ध हो गईं। . हनुमान ने कन्याओं से पूछा-~भद्र ! आप कौन हैं ? कन्याओं ने अपना परिचय दिया इस दधिमुख द्वीप में दधिमुख नगर है । उसका अधिपति गन्धर्वराज है और उसकी रानी है कुसुममाला। हम तीनों इन्हीं की पुत्रियाँ हैं । हमारे साथ अनेक विद्याधर विवाह करने को उत्सुक हैं।' इनमें अंगारक नाम का विद्याधर कुछ ज्यादा ही लालसावान है। किन्तु पिताजी स्वतन्त्र विचारधारा के हैं। उन्होंने इनमें से किसी की भी इच्छा स्वीकार नहीं की। ' एक बार पिताजी ने एक मुनि से पूछा-'इंन पुत्रियों का पति कौन होगा ?' तो मुनिराज ने बताया-'जो साहसगति विद्याधर का वध करेगा, वही इनका पति होगा।' मनिराज के वचन प्रमाण मानकर उस पुरुष की बहत खोज की गई किन्तु उसका कहीं पता नहीं लगा। उसी का पता लगाने के लिए हमने विद्या सिद्ध करना प्रारम्भ किया।
SR No.010267
Book TitleJain Kathamala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1977
Total Pages557
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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