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________________ ३०० | जैन कथामाला (राम-कथा) श्रीराम तो नगरी के बाहर उद्यान में ही ठहर गये और उनकी आज्ञा लेकर सुग्रीव ने नगर में प्रवेश किया । अपने राजा के स्वागत में प्रजाजनों ने बड़ा उत्सव किया । - त्रिपष्टि शलाका ७१६ - उत्तर पुराण पर्व ६८ श्लोक २६६-३३६ तथा ३६३-४६५ (६) सुग्रीव और बाली का युद्ध एक बार हनुमान के समक्ष भी हुआ था किन्तु हनुमान सुग्रीव को बचा न सके । इसका एक अन्य कारण दिया गया है -- अनेक देवताओं से वरदान पाकर बाल्यावस्था में हनुमान उद्दण्ड हो गये । वे निर्भय होकर मुनियों के आश्रमों में उपद्रव करने लगे । 1 उस पर भृगु और अंङ्गिरावंशीय मुनियों ने कुपित होकर इन्हें शाप दिया 'अरे वानर ! जिस बल के घमण्ड से तू हम लोगों को पीड़ित करता है उसे भूल जायगा और तब तक भूला रहेगा जब तक कि कोई तुझे तेरे वल का स्मरण नहीं करायेगा ।' इस कारण हनुमानजी अपना बल भूल गये और सुग्रीव की बुद्धि वाली के भय से भ्रमित हो गयी थी इसलिए वह इन्हें इनके वल का स्मरण न करा सका । आगे जव समुद्र लांघकर लंका जाने और सीता की खोज-खबर लाने का प्रसंग आया तब ऋक्षराज वृद्ध जाम्बवान ने इन्हें इनके वल का स्मरण कराया तब इन्हें अपने बल की स्मृति हो आई और ये सागरसंतरण कर सके । [ वाल्मीकि रामायण, उत्तरकाण्ड ] यही सब वर्णन तुलसी के रामचरितमानस में भी हैं ।
SR No.010267
Book TitleJain Kathamala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1977
Total Pages557
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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