SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 345
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ नकली सुग्रीव -महाराज सुग्रीव तो अभी अन्दर गये हैं, तुम कौन हो मायावी ? - . -यह कहकर द्वारपालों ने उसे राजमहल में जाने से रोक दिया। . -क्या तुम अपने राजा को भी भूल गये ? . -नहीं, हम तो राजा को खूब जानते हैं। . -तो फिर अन्दर क्यों नहीं जाने देते ? -इसीलिए कि तुम हमारे राजा नहीं हो। ..... किष्किवा नगरी के राजमहल के द्वार पर द्वारपालों और राजा सुग्रीव में विवाद चल रहा था । द्वारपाल उसे प्रवेश नहीं करने दे रहे थे और वह उन पर जोर-जोर से गर्ज रहा था। ... 'द्वार पर यह शोर कैसा है. ?' -कहता हुआ वालि-पुत्रः चन्द्ररश्मि बाहर आया । उसे देखते ही आगन्तुक सुग्रीव बोल उठा.. --चन्द्ररश्मि ! मेरे वत्स ! यह क्या मजाक है ? ये द्वारपाल मुझे मायावी समझ रहे हैं। राजमहल में प्रवेश नहीं करने देते। .. भ्रमित तो चन्द्ररश्मि भी हो गया था। एक सुग्रीव को तो वह अभी राजमहल में देखकर आया था और दूसरा द्वार पर खड़ा है। : यह क्या माया है ! .... ... - अपना बचाव करते हुए द्वारपाल वोले- :
SR No.010267
Book TitleJain Kathamala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1977
Total Pages557
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy