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________________ २८४ | जैन कथामाला (राम-कथा) उसी समय राजा चन्द्रोदर का पुत्र विराध अपनी सम्पूर्ण सेना . लेकर आया और लक्ष्मण से बोला –महाभुज ! मैं आपके शत्रुओं का शत्रु हूँ। इसीलिए आपकी सहायता करना चाहता हूँ। लक्ष्मण ने हँस कर कहा - Phico १ (क) यह विराध चन्द्रोदर राजा का वनवासी पुत्र था। जिस समय चन्द्रनखा से गान्धर्व से विवाह कर विद्याधर खर पाताल लंका गया तो वहाँ आदित्यराजा का पुत्र चन्द्रोदर राजा राज्य कर रहा था । चन्द्रोदर को वानरवंशी राजा आदित्यराजा किष्किधा जाते समय पाताल लंका के सिंहासन पर विठा गये थे। खर ने चन्द्रोदर को वहाँ से मार भगाया . और स्वयं राजा बन बैठा। उसकी गभिणी रानी अनुराधा ने, वन में ही पुत्र प्रसव किया जिसका नाम विराध पड़ा। इसी कारण विराध खर से शत्रुता रखता था और वह लक्ष्मण की सहायता के लिए आया। (विस्तार के लिए देखिए 'सहस्रांशु की दीक्षा' का पाद टिप्पण । (ख) वाल्मीकि रामायण में विराध को राम-लक्ष्मण का शत्रु माना गया है। इसकी कथा संक्षेप में निम्न है दण्डकारण्य में प्रवेश करने पर राम-लक्ष्मण-जानकी के सामने एक , विशालकाय राक्षस आ खड़ा हुआ । उसका नाम विराध था। वह जब नाम के राक्षस और शतह्रदा (माता का नाम) का पुत्र था । उसे ब्रह्माजी से यह वरदान प्राप्त था कि उसकी मृत्यु किसी शस्त्र से न होगी। । राक्षस विराध ने सीताजी को उठा लिया। इस पर राम-लक्ष्मण दोनों ने उसे वाणों से व्यथित कर दिया। उसने सीता को छोड़कर दोनों हाथों से दोनों भाइयों को उठाया और ले जाने लगा। दोनों भाइयों ने वलपूर्वक उसकी दोनों भुजाएँ उखाड़ लीं। तब वह भूमि पर गिर पड़ा । लक्ष्मण उसे जमीन में गाड़ने के लिए गड्ढा खोदने लगे।
SR No.010267
Book TitleJain Kathamala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1977
Total Pages557
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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