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________________ २७८ | जैन कथामाला (राम-कथा) साधर्मी बन्धु जटायु ने सती पर संकट देखा तो रक्षा के लिए जी-जान से तत्पर हो गया। पक्षी था वेचारा, मनुष्य की भाषा में तो ललकार सकता ही नहीं था किन्तु अपनी चोंच और पंजों के तीक्ष्ण प्रहार से उसने लंकापति को विह्वल कर दिया । उसके वक्षस्थल की खाल ही उधेड़ डाली। रावण ने देखा कि पक्षी तो पर्वत के समान अड़ गया है । उसके प्रहार साधारण नहीं, वज्र से भी तोखे और भयंकर हैं तो उसने कमर से तलवार निकाली और जटायु पर प्रहार करने लगा। । इधर मायामयी हरिण उड़कर आकाश में चला गया और राम निराश वापिस लौट आये । सीता को वहाँ न देखकर वे अन्य लोगों से पूछने लगे । सबने एक ही उत्तर दिया-'आप ही के साथ तो गई थी सीता पालकी में बैठकर । आपको ही मालूम होगा।' राम समझ गये कि सीता किसी मायावी के जाल में फंस गई। वे विरह-शोक से व्याकुल होकर अचेत हो गये। (श्लोक १६१-२४६) यहीं राजा दशरथ के एक दूत द्वारा सीता का पता बतला दिया गया है : जब राम अपने अनुज लक्ष्मण के साथ शोक-विह्वल बैठे थे उसी समय राजा दशरथ के एक दूत ने आकर कहा-'स्वामी ! आपके पिताश्री महाराज दशरथ दे स्वप्न में देखा था कि राहु चन्द्रमा की रानी रोहिणी को लेकर आकाश में चला गया है, और चन्द्रमा अकेला इधरउधर भटक रहा है । इस स्वप्न का फल पुरोहिन ने बताया कि मायावी रावण सीता का हरण कर ले गया है और रामचन्द्र शोक से व्याकुल इधर-उधर भटक रहे हैं।' दूत अपनी बात समाप्त कर ही पाया कि राजा जनक, भरत, शत्रुघ्न अपनी सेनाएँ लेकर आ गये। लक्ष्मण की भी सेना आ गई। संभी सीता को वापिस लाने का उपाय सोचने लगे । (श्लोक २४७-२६८)
SR No.010267
Book TitleJain Kathamala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1977
Total Pages557
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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