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________________ - : १: सूर्यहास खड्ग लक्ष्मण वन के शांत नीरव वातावरण में घूम रहे थे। सामने वांसों का एक वीहड़ वन था । रात जैसा अँधेरा छाया था और वाँसों की सघनता के बीच कौन क्या कर रहा है कुछ भी पता नहीं चलता थ। लक्ष्मण उसं वाँस वन के भीतर घुसे तो सहसा ही एक अजीव चमक से उनकी आँखें चुंधिया गई । देखा तो सूर्य की भांति चमचमाता एक दिव्य खड्ग आकाश में लटक रहा था। उन्हें उत्सुकता हुई। समीप जाकर हाथ वढ़ाया तो खड्ग उनके हाथ में आ गया। मुग्ध हए लक्ष्मण कुछ देर तक खड्ग को निहारते रहे। शस्त्र हाथ में आते ही क्षत्रिय की उत्सुकता होती है, उसे प्रयोग करने की । लक्ष्मण ने भी सोचा-'खड्ग तो चमकदार है, पर देखू इसकी धार कैसी है ? वे किसी निर्जीव वस्तु की खोज में इधर-उधर नजरें दौड़ाने लगे। दण्डकवन घना जंगल था। सभी ओर घने और हरे वृक्ष खड़े थे। कैसे घात करते एकेन्द्रिय वनस्पतिकाय के जीव का निष्प्रयोजन ? व्यर्थ की हिंसा चाहे वह एकेन्द्रिय जीव की ही क्यों न हो, जैन श्रावक की रुचि के प्रतिकूल है। ___ लक्ष्मण की नजरें खोज रही थीं किसी निर्जीव वस्तु को । खड्ग की धार अजमाने की इच्छा बलवती होती जा रही थी। भुजाएँ की की हिंसा चाहेबान्द्रय वनस्पनर घने और नज
SR No.010267
Book TitleJain Kathamala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1977
Total Pages557
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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