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________________ . ..: १२ : . वनमाला का उद्धार --इस जन्म में तो दशरथपुत्र लक्ष्मण मुझे पति रूप में प्राप्त हए नहीं । यदि मेरा प्रेम सच्चा है तो अगले जन्म में वही मेरे पति । हों। -यह कहकर एक नवयौवना अपने उत्तरीय का ही कण्ठपाश वनाकर वटवृक्ष की एक शाखा से लटक गई। वटवृक्ष की दूसरी ओर राम-सीता रात्रि के प्रगाढ़ अन्धकार में . निद्रामग्न थे और लक्ष्मण उनकी रखवाली में सजग तथा सचेत । - रात्रि की नीरवता में अपना नाम सुनकर लक्ष्मण चौंक पड़े और वृक्ष की दूसरी ओर आये । सामने ही दिखाई पड़ी एक सुन्दरी वाला शाखा से लटकी प्राण देने को तत्पर । सौमित्र ने दौड़कर कण्ठ से पाश निकाला और उसे पृथ्वी पर खड़ा किया तो युवती बिलखकर कहने लगी -कैसी आपत्ति है ? इस भयानक वन में अकेली मृत्यु का आलिंगन करने आई तो आप वाधक वनकर आ खड़े हुए। ___-किन्तु तुम मरना क्यों चाहती हो? --मनवांछित पति न मिला तो जीवित रहकर तिल-तिल जलने से क्या लाभ ? .-कौन है तुम्हारा मनवांछित पति और क्यों नहीं मिला?
SR No.010267
Book TitleJain Kathamala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1977
Total Pages557
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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