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________________ सीता जन्म : भामण्डल-हरण | १७५ मुनिचन्द्र नाम के मुनि से उसने धर्म श्रवण किया और श्रावक धर्म स्वीकार कर लिया। कुलमण्डित राजकुमार होकर भी राज्य न पा सका इसलिए उसके हृदय में राज्य प्राप्ति की लालसा बनी रही। मृत्यु पाकर वह जनक राजा की रानी विदेहा' के गर्भ में अवतरित हुआ। उसी समय सरसा का जीव भी ब्रह्मदेव लोक से च्यवकर विदेहा की कुक्षि में अवस्थित हुआ। इससे पहले सरसा का जीव ईशान देव लोक में था और वहाँ से कालधर्म प्राप्त कर एक पुरोहित की पुत्री वेगवती के रूप में उत्पन्न हुआ। उसो जन्म में उसने पुन: दीक्षा ली और तप के प्रभाव से ब्रह्मदेव लोक में उत्पन्न हुई थी। दोनों जीव रानी विदेहा के गर्भ में बढ़ने लगे। गर्भकाल पूरा होने पर रानी ने एक पुत्र और एक पुत्री को युगल रूप से जन्म दिया। जनक के राजमहल में खुशियाँ छा गई। मंगलवाद्य बजने लगे। माता-पिता पुत्र-पुत्रो का मुख देख कर विभोर हो गये । सम्पूर्ण नगर जन्मोत्सव मनाने के लिए सज गया । लोग आनन्द मग्न थे। अचानक रानी विदेहा के प्रसूतिगृह से एक चीख सुनाई दी और करुण-क्रन्दन गूंजने लगा । दासियों में भगदड़ मच गई । अन्दर जाकर देखा तो पुत्र गायब ! घबड़ाई हुई दासियों ने राजा जनक को सूचना दी। महाराज शोक विह्वल हो गये। रंग में भंग पड़ गया। मंगलवाद्य शान्त हो गये और मंगलाचार करने वाली स्त्रियों के मुख बन्द । दुःख और शोक की लहर सभी और व्याप्त हो गई। १ जनक की रानी का नाम विदेहा के स्थान पर वसुधा है। -~-उत्तर पुराण पर्व ६८, श्लोक २८
SR No.010267
Book TitleJain Kathamala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1977
Total Pages557
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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