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________________ ( १८ ) सीता पर बलात्कार न करने के प्रसंग में रावण को तीन-तीन बार श्राप मिलने का वर्णन है । दूसरी वार नलकूबर की पत्नी रम्भा अप्सरा से भोग करते समय ही वह क्यों न मर गया जबकि उसे पुंजिकास्थला अप्सरा के साथ वलात्कार करने पर ब्रह्माजी "सिर के सौ टुकड़े हो जाने का श्राप दे चुके थे। दूसरी बात कैकेयी द्वारा राम को चौदह वर्प काही वनवास मांगने की घटना भी विचारणीय है । यदि कैकेयी का पुत्र-मोह भरत को राजा देखना चाहता था तो चौदह वर्ष बाद उसे राज्य-भ्रष्ट कैसे देख पाता? काश ! भरत राजा बन जाते और जब राम १४ वर्ष बाद वन से लौटते तो क्या स्थिति होती ? इसकी कल्पना भी शरीर में सिहरन पैदा कर देती है । इसी प्रकार जव सीताजी की अग्नि-परीक्षा लंका के बाहर युद्ध क्षेत्र में ही ले ली गई थी और उनके सतीत्व की साक्षी देवताओं ने दे दी थी तो उनके परित्याग का औचित्य ही नहीं रह जाता । फिर तुलसीदास जी ने तो अपने मानस में एक कदम और आगे बढ़कर नकली सीता का हरण कराया है । देखिए सुनहु प्रिया व्रत रुचिर सुसीला ! मैं कछु करपि ललित नर लीला । तुम पावक महुँ करहु निवासा । जौं लगि करहुँ निसाचर नासा ।। जवहिं राम सव कहा बखानी । प्रभुपद धरि हिय अनल समानी ।। निज प्रतिबिंब राखि तहँ सीता ! तैसइ सील रूप सुविनीता ।। लछिमनहू यह मरमु न जाना । जो कछु चरित रचा भगवाना ।' और यही नकली सीता (सीता का प्रतिबिंव) अग्नि-परीक्षा के समय अग्नि में जल जाती है और असली सीता अग्निदेव वापिस दे देते हैं श्रीखण्ड सम पावक प्रवेस कियो सुमिरि प्रभु मैथिली । जय कोसलेस महेस वंदित चरन रति अति निर्मली ।। १ मानस, अरण्यकाण्ड, दोहा २४ के अन्तर्गत चौपाई संख्या २-३ ।
SR No.010267
Book TitleJain Kathamala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1977
Total Pages557
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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