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________________ १५२ / जैन कथामाला (राम-कथा) —आज के भोजन में बहुत लज्जत है। -हाँ महाराज ! आज जीवित शिशु का मांस पकाया है। ----आगे सदा जीवित शिशु का ही मांस पकाना-मांस लोलुपी सोदास ने रसोइये को आज्ञा दी। राजा की आज्ञा से रसोइया निडर हो गया था । अव वह भांतिभांति के लालच देकर भोले-भाले बच्चों को पकड़ने लगा। दिनों-दिन वच्चों के गायब होने से माता-पिता सतर्क हो गये। रसोइये का यह पाप भी कव तक छिपता? एक-न-दिन तो प्रगट होना ही था। ____ एक बालक को फुसलाते हुए नगरवासियों ने उसे देख लिया। ज्योंही वह वच्चे को साथ लेकर चला, लोगों ने उसे पकड़कर पीटना प्रारम्भ कर दिया। रसोइया चीख-चीखकर राजा की दुहाई देने लगा किन्तु प्रजा के विरुद्ध कोई भी राज-कर्मचारी उसे बचाने नहीं आया। जब वह पिटते-पिटते वेहाल हो गया तो किसी समझदार व्यक्ति ने लोगों को रोका और रसोइये से पूछा -इन बच्चों का तुम करते क्या हो ? रसोइये ने सव वात स्पष्ट बता दी । मरता क्या न करता-सच नहीं बोलता तो जनता उसी के प्राण ले लेती। 'राजा मानव-शिशु-भक्षी है' जानकर प्रजा को बहुत दुःख हुआ। माता-पिता को पुत्र अपने प्राणों से भी अधिक प्यारे होते हैं। राजा से फरियाद करने से तो लाभ ही क्या था ? जो स्वयं उस पाप का प्रेरक हो, उमसे न्याय की क्या आशा ? लोगों ने जाकर मन्त्रियों में सव हाल कह सुनाया। साक्षी रूप में राजा का प्रिय रसोइया या ही।
SR No.010267
Book TitleJain Kathamala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1977
Total Pages557
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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