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________________ क्षमावीर सुकोशल | १३६ का नाम सुकोशल रखा और उसे बाल्यावस्था में सिंहासन परे विठाकर दीक्षा ग्रहण कर ली। ___ दीक्षित होने से पहले रानी ने राजा की बहुत मिन्नत खुशामद की । अनेक प्रयास किये कि राजा घर में ही धर्मध्यान करें, दीक्षा न लें किन्तु कीर्तिधर ने एक न सुनी और वे घर छोड़कर प्रव्रजित हो ही गये। किसी भी प्राणी की मिन्नत-खुशामद, प्रार्थना-विनय ठुकरा दी जाय तो उसके हृदय में कोप और घृणा का संचार हो जाना स्वाभाविक है । यही दशा रानी सहदेवी की भी हुई। उसके हृदय में भी राजा के प्रति अरुचि के भाव उत्पन्न हो गये। राजा कीर्तिधर विजयसेन मुनि के चरणों में प्रवजित होकर मुनि कीर्तिधर हो गये । वे घोर अभिग्रह धारण करते और कठिन से कठिन परीसह को भी समता भाव से सह जाते । उनके निरतिचार और निर्दोष संयम पालन से सन्तुष्ट होकर गुरुदेव ने उन्हें एकल विहार की आज्ञा दे दी। अव मुनि कीर्तिधर मास-मास का उपवास करते और श्रमणधर्म का निर्दोष आचरण करते हुए एकलविहारी हो गये। ____ अनेक स्थलों पर विहार करते हुए एक बार वे मासोपवास के पारणे हेतु अयोध्यानगरी में पधारे। मध्याह्न के समय वे भिक्षा हेतु राजमार्ग पर चले आ रहे थे कि रानी सहदेवी ने महल में से उन्हें देखा। रानी अपने पति को तुरन्त पहचान गई। उसके हृदय में कुविचारों का तूफान खड़ा हो गया—'ये मेरे पति हैं। पहले इन्होंने दीक्षा ली तो मुझे पति वियोग सहना पड़ा । आज तक मैं इनके विरह में तड़पती हूँ। यदि कहीं इनके सम्पर्क से मेरा पुत्र भी गृह छोडकर विरक्त हो गया तो मुझे पुत्र वियोग भी सहना पड़ेगा। . स्त्री के लिए संसार में पत्र दो ही अवलम्बन हैं। पति का
SR No.010267
Book TitleJain Kathamala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1977
Total Pages557
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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