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________________ हजुमान का जन्म | १२१ और शिला चूर-चूर होने की स्मृतिस्वरूप उसका दूसरा नाम श्रीशैल पड़ा। वाल-रवि को फल समझकर खाने के लिए दौड़ पड़े। वे आकाश-मार्ग: से चलते हुए सूर्य के पास पहुंच भी गये । उसी समय इन्द्र वीच में अवरोध वनकर आये । हनुमान को भूख तो लगी ही थी वे ऐरावत हाथी को बड़ा फल समझकर उसको खाने के लिए लपके । तभी इन्द्र ने वज्र का प्रहार कर दिया । हनुमानजी की बायीं ठुड्डी टूट गई और चोट खाकर पर्वत पर गिर पड़े। इनके पिता वायुदेव इन्हें उठाकर एक गुफा में ले गये और कुपित होकर उन्होंने अपना संचरण बन्द कर दिया । वायु का संचरण बन्द हो जाने से समस्त सृष्टि काठ के समान स्थिर हो गई। . सभी देवताओं ने ब्रह्मा से प्रार्थना की तो वे सबको साथ लेकर वायु के पास पहुंचे । ब्रह्मा के स्पर्श से हनुमान जीवित हो उठे । प्रसन्न होकर वायु ने संचरण किया तो समस्त सृष्टि के कार्य पूर्ववत् चलने लगे । उस समय ब्रह्माजी की प्रेरणा से उपस्थित देवताओं ने हनुमान को विभिन्न प्रकार के वरदान दिये। __इन्द्र ने उनकी ठुड्डी जुड़ने और अपने वज्र से भी न मरने का वरदान दिया। . सूर्य ने अपने तेज का सौवाँ भाग और समस्त विद्या प्राप्ति तथा कुशल वक्ता और बुद्धिमान होने का वर दिया । वरुण ने लाखों वर्षों की आयु और जल तथा अपने पाश से अवध्यता; यम ने नीरोगता और कालदण्ड से अवध्यता; कुबेर ने युद्ध में अविजेयता; विश्वकर्मा और महादेव दोनों ने भी अपने दिव्य शस्त्रों से न मरने का वरदान दिया और ब्रह्माजी ने दीर्घायु, धर्मबुद्धि और ब्रह्मास्त्र से अभय प्रदान किया। [वाल्मीकि रामायण, उत्तरकाण्ड]
SR No.010267
Book TitleJain Kathamala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1977
Total Pages557
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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