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________________ ११४ | जैन कथामाला (राम-कथा) - नाथ! आज ही मैंने ऋतु स्नान किया है । यदि गर्भवती हो गई तो मेरा कौन विश्वास करेगा ? पिता और पति दोनों ही कुल कलंकित हो जायेंगे | पवनंजय ने अपनी मुद्रिका उतारकर देते हुए कहा 1 - ऐसा नहीं होगा । मेरी मुद्रिका तुम्हारे सतीत्व की साक्षी है । मैं शीघ्रातिशीघ्र लौटूंगा । पत्नी को आश्वासन देकर कुमार चले गये और रावण के साथ वरुण को विजित करने को प्रस्थित हुए । X X X अंजना की आशंका सत्य प्रमाणित हुई । कुछ मास पश्चात ही गर्भ के लक्षण स्पष्ट हो गये । सास केतुमती ने उसे कलंकिनी मान लिया । अंजना ने मुद्रिका दिखाई, सतीत्व का वास्ता दिया, अपने पिछले निर्दोष आचरण की स्मृति दिलाई परन्तु केतुमती नहीं पसीजी । उसने सेवकों द्वारा अंजना और वसन्ततिलका को महेन्द्रपुर नगर के बाहर वन में छुड़वा दिया । उस समय संध्या काल था । कुछ समय बाद सूर्य डूब गया, मानो सती पर लगे कलंक से दुःखी होकर उसने भी अपना मुख अस्ताचल की ओट में छिपा लिया । - त्रिपष्टि शलाका ७।३ ***
SR No.010267
Book TitleJain Kathamala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1977
Total Pages557
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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