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________________ (:. ११. ) कथा मैं भी अनेक अन्तर्कथाएँ हैं, उपाख्यान हैं । इनसे मूलकथा को आगे बढ़ने में गति मिलती है किन्तु अनेक अन्तविरोधों के कारण उसमें गतिरोध. भी होता है । मूल,कथा एक होते हुए भी अन्तर्कथाओं में अन्तर आ जाता है। . इन अन्तरों के अनेक कारण होते हैं-कुछ लेखकों के कल्पना-प्रसूत तो कुछ परिस्थितिजन्य । लेखकों के कल्पना-प्रसूत अन्तरों में उनकी व्यक्तिगत मान्यताओं और परम्पराओं का भी प्रभाव पड़ता है। ___ यह बात नहीं कि विभिन्न परम्पराओं के राम-कथानकों में ही अन्तर. आये हों। एक ही परम्परा की विभिन्न रामायणों में भी पर्याप्त मतभेद और वर्णन वैविध्य हैं। उत्स एक मूल एक होने पर समानता तो होनी ही चाहिए किन्तु विविधता हो गई-यही विचारणीय है । श्रीराम की मूल कथा इतनी सी ही है कि- " श्रीराम अयोध्यानरेश राजा दशरथ के पुत्र थे और उनकी पत्नी सीता विदेहराज जनक की पुत्री। राजा दशरथ की तीन रानियां थीं-कौशल्या सुमित्रा और कैकेयी तथा चार पुत्र राम, लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न । कैकेयी. के अपने पुत्र भरत के प्रति मोह के कारण राम को वन में जाना पड़ता है। उनके साथ छोटा भाई लक्ष्मण और पत्नी सीता भी वन को जाते है। वहां लंका का राजा रावण धोखे से सीता का अपहरण करके ले जाता है। वन्य जातियों, ऋक्ष और वानर वंशियों की सहायता से वे लंका पर आक्रमण करते हैं, रावण का वध करते हैं और सीता को वापिस ले आते हैं । अयोध्या में सीता के चरित्र के प्रति अपवाद फैलता है । परिणामस्वरूप श्रीराम गर्भिणी सीता का परित्याग कर देते हैं । सीता दो पुत्रों को जन्म देती है। पुत्रों के कारण पति-पत्नी पुनः आमने सामने आ जाते हैं। सीता संसार से विरक्त होकर स्वर्ग को चली जाती हैं और बाद में राम आयु पूरी करके परम धाम (मोक्ष) को चले जाते हैं। __ इस मूल कथा को अक्षुण्ण रखते हुए सभी लेखकों ने रामचरित गाया है। तीनों परम्पराओं में इनका वर्णन हुआ है।
SR No.010267
Book TitleJain Kathamala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1977
Total Pages557
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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