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________________ हिंसक यज्ञों के प्रचार की कहानी | ७६ -बताओं माँ ! क्या काँटा है तुम्हारे हृदय में और मैं किस प्रकार उसे निकाल सकती हूँ। -पुत्री का स्वर था। माता कहने लगी-तुम मेरी वात ध्यान से सुन लो -आदि तीर्थकर भगवान ऋषभदेव के प्रमुख पुत्र दो थे-भरत और बाहुवली । भरत के पुत्र सूर्य हुए और बाहुबली के सोम । सूर्य के वंश में तुम्हारे पिता अयोधन उत्पन्न हुए और सोम के वंश में मेरा भाई तृणविन्दु । तृणविन्दु की पत्नी सत्ययशा तुम्हारे पिता की बहन है और उसका पुत्र है मधुपिंग । इस प्रकार मधुपिंग मेरा भतीजा है।' -वेटी ! स्वयंवर में किस भाग्यशाली के कण्ठ में तुम वरमाला डालोगी, यह तो मुझे नहीं मालूम; किन्तु मेरी इच्छा है कि तुम्हारा विवाह मधुपिंग से हो। पुत्री ने माता की इच्छा स्वीकार करते हुए कहा-- --माँ ! तुम्हारी बेटी के लिए यह इच्छा नहीं आज्ञा है । मैं इसे स्वीकार करती हूँ। स्वयंवर में सम्मिलित राजाओं में यदि मधुपिंग भी उपस्थित हुए तो वरमाला उन्हीं के गले में पड़ेगी। ____ मन्दोदरी माता-पुत्री की बातचीत सुनकर वहाँ से चुपचाप खिसक आई और अपने स्वामी सगर को सव कुछ बता दिया। राजा सगर येन-केन-प्रकारेण सुलसा को प्राप्त करना ही चाहता था । अतः उसने सोच-विचार कर एक ऐसा उपाय खोज निकाला कि सांप भी भर जाये और लाठी भी न टूटे । उसने अपने पुरोहित' से कहा १ सुलसा की माता ने अपने भाई का नाम तृणपिंगल और तृणपिंगल की स्त्री का राम सर्वयशा तथा उनके पुत्र का नाम मधुपिंगल बताया। --उत्तर पुराण ६७।२२३-२२४ २ यहाँ पुरोहित न मानकर मन्त्री माना है और उसका नाम है विश्वभू । उसने आश्वासन दिया कि मैं अपनी कुशलता से सब काम ठीक कर दूंगा। --उत्तर पुराण ६७२१८-१९
SR No.010267
Book TitleJain Kathamala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1977
Total Pages557
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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