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________________ है। इन बातों में यह ब्राह्मण-धर्म से सादृश्य रखता है और इसलिए इसे 'ब्राह्मण-धर्म' और बौद्धधर्म का औसत कहा गया है।' श्रमणों में कदाचित् प्राचीनतम सम्प्रदाय निगण्ठों अथवा जैनों का था। अब यह प्राय: सर्व-सम्मत है कि महावीर से पूर्व पाश्च नाम के तीर्थकर सचमुच हुए थे। उनके पहले के तीर्थंकरों की ऐतिहासिकता सन्दिग्ध है, किन्तु जैनों के इस विश्वास को अस्वीकार नहीं किया जा सकता कि उनकी मुनि परम्परा अत्यन्त प्राचीन तथा अवैदिक थी। __ वर्धमान का जन्म 540 ई. पू. के लगभग विदेह की राजधानी वैशाली के निकट हुआ था। उनके पिता सिद्धार्थ एक क्षत्रिय-कुल के प्रमुख थे, उनकी माता त्रिशाला विदेह के राजा की बहन थी उन्होंने यशोदा से विवाह किया; किन्तु बुद्ध के विपरीत वह अपने माता-पिता की मृत्यु तक अपने घर में रहे और बाद में जब वह अट्ठाईस वर्ष के हो गए तब उन्होने आध्यात्मिक जीवन में प्रवेश किया। वासुदेव हिण्डी मुख्यरुप से एक प्रेमाख्यान है तथापि धार्मिक और दार्शनिक विचारों से व्याप्त है। कालचक्र की अवनति की अवस्था (अवसर्पिणी) में तीर्थकरों का प्रादुर्भाव हुआ। यह विचारधारा भगवद् गीता के चतुर्थ अध्याय के श्लोक 7 और 8 के साथ साम्य रखती है ।10 यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत । अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम ॥ जब-जब धर्म की हानि और अधर्म की वृद्धि होती है, तब-तब ही मैं अपने रूप को रचता परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम। (92)
SR No.010266
Book TitleJain Katha Sahitya me Pratibimbit Dharmik Jivan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpa Tiwari
PublisherIlahabad University
Publication Year1993
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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