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________________ जयघोष, राजमती सवांद, केशीगौतम का सवांद आदि अनेको आख्यान और सवांद इस सूत्र में पाये जाते हैं। आगमिक प्राकृत कथाओं में कुछ कथाएं तो परपरागत रूप से जैन धर्मानुमोदित है जबकि कुछ अन्य भारतीय कथा के नैतिक, धार्मिक कोश से जैन धर्म घटित कर लिखी गयी हैं। सामान्यत: इन कथाओं में नेमि, पाश्व, और महावीर इन तीन तीर्थकरों के जीवन चित्र चित्रित है। ए. एन. उपाध्ये ने आगमकाल की कथाओं के विश्लेषण में बताया है-"आरम्भ में, जो मात्र उपमाये थी, उनको बाद में व्यापक रूप देने और धार्मिक मतावलम्बियों के लाभार्थ उससे उपदेश ग्रहण करने के निमित्त उन्हें कथात्मक रूप प्रदान किया है”। नायाधम्मकहाओ में सुन्दर उदाहरण आये हैं। जैसे कछुआ अपने अंगों की रक्षा के लिये शरीर को सिकोड़ लेता है, लौकी कीचड़ से आच्छादित होने पर जल में डूब जाती है और नन्दी फल के वृक्ष हानिकारक होते हैं। ये विचार उपेदश देने के उद्देश्य से व्यवहृत हुये हैं। ये चित्रित करते हैं कि अरक्षित साधु कष्ट उठाता है, तीव्रोदयी कमी परमाणुओं के गुरुतर भार से आच्छन्न व्यक्ति नरक जाता है और जो विषयानन्द का स्वाद लेते है; अन्त में वे दुःख प्राप्त करते हैं। इन्हीं आधारों पर उपेदश प्राधान कथा में वर्णनात्मक रूप में या जीवन्त वार्ताओं के रूप में पल्लवित की गयी है।" टीका कालीन प्राकृत कथा साहित्य में मुख्यत: आगमों की व्याख्यायें प्रस्तुत की गई है। आगमों की कुछ, संघ दास गणि क्षमा श्रमण रचित निशीथ भाष्य, कल्प भाष्य व व्यवहार भाष्य; जिनदासगणि महत्तर रचित चुर्णियां आदि है। नियुक्ति साहित्य में कथानक, उदाहरण, दृष्टान्त आदि को गाथाओं, के रूप संग्रहीत किया गया है। इनमें, गांधार श्रावक, तोसिलपुत्र, स्थूलभद्र, कालक, करकंडू, मृगापुत्र, भृगावती आदि धार्मिक एवं पौराणिक आख्यानों का स्वतंत्र कथा ग्रन्थों के रूप में सृजन किया गया है। मुख्यत: दस आगम ग्रन्थों पर नियुक्तियां प्राप्य है। पिण्ड, ओघ और आराधना अपने में स्वतंत्र अस्तित्व रखती है। स्वतंत्र नियुक्तियों में प्रथम दो” 'दशवैकालिक' और 'आवश्यक' नियुक्ति की पूरक है। तृतीय का उल्लेख मूलाचार से प्राप्त होता है10” नियुक्ति, भाष्य एवं टीकाओं के तुलनात्मक अध्ययन से स्पष्ट है कि भाष्य एवं टीकायें, कथाओं के सन्दर्भ में नियुक्तियों से अधिक सम्पन्न है। (3)
SR No.010266
Book TitleJain Katha Sahitya me Pratibimbit Dharmik Jivan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpa Tiwari
PublisherIlahabad University
Publication Year1993
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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