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________________ 187. विव्भमवई गयन्तमई, समराइच्च, पृ. 900 । 188. तत्रैव, पृ. 5831 189. उप. गा. 94, पृ. 651 190. उप. गा. 94. पृ. 651 191. कुवलयमाला, 170, 21, 25. । 192. तत्रैव, 170.271 193. कुवलयमाला, 171.1, 2. । 194. तत्रैव, 171.1, 151 195. प्राचीन भारत के कलात्मक विनोद, पृ. 114, 196. जैन साहित्य में आगदत्त की कहानी बहत लोकप्रिय है और इसका अनुवाद करके जैकोवी ने हिन्द्र कहानियों के साथ जोड़ दिया। इसका पुन | अनुवाद अंगरेजी में जे. जे. मेयेर ने किया। 197. वासुदेव हिण्डी (प्र. खं.), 49 । 198. तत्रैव, 49-52.। 199. तत्रैव, 34.। 200. तत्रैव, 226.। 201. तत्रैव, 227.। 202. तत्रैव, 97.1 203. वासुदेव हिण्डी (द्वितीय खं.), 11.121 बी. । 204. तत्रैव, (प्र. खं), 23.1 205. तत्रैव, 109.1 206. तत्रैव, 78-791 207. तत्रैव, 19.। 208. तत्रैव, 7.1 209. तत्रैव, 70. । 210. तत्रैव, 66, 83, 97.। 211. वासुदेव हिण्डी (द्वि. खं.), 11, 52बी । 212. वासुदेव हिण्डी (प्र. खं.), 277, सादृश्य दृष्टिकोण की अभिव्यक्ति कामसूत्र' और 'वात्स्यायन' में उपलब्ध 213. तत्रैव, (प्र. खं.), 1281 (81)
SR No.010266
Book TitleJain Katha Sahitya me Pratibimbit Dharmik Jivan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpa Tiwari
PublisherIlahabad University
Publication Year1993
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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